
–वगैर प्लाट के प्लाट आवंटित कर लाखों जमा कराये, 23 साल बाद कहा छह फीसदी ब्याज सहित वापस ले जमा राशि–हाईकोर्ट ने 15 फीसदी ब्याज सहित चार हफ्ते में पूरी जमा राशि वापस करने का दिया निर्देश
प्रयागराज, 25 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक अजीबो-गरीब मामला उजागर हुआ है। उप्र राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा उद्योग लगाने के लिए प्लाट दिया गया, पर मौके पर प्लाट का अस्तित्व ही नहीं था। किराया, विकास शुल्क ,आदि लाखों रूपए जमा करा लिए। कथित प्लाट खेती की जमीन निकली। कोई सड़क व विकास कार्य नहीं किया गया, जिससे उद्योग लग सकता हो। 23 साल बाद पैसा वापस लेने या दो साल में अन्य प्लाट का विकल्प दिया। किन्तु कोई कार्रवाई नहीं की तो फर्म ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने कहा अधिकारियों की लापरवाही, मनमानी व धोखाधड़ी का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। कोर्ट ने उप्र राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण को 15 फीसदी ब्याज सहित याची से जमा कराई गई पूरी राशि को चार हफ्ते में वापस करने का निर्देश दिया है और गैर-जिम्मेदाराना हरकत से याची को परेशान करने के लिए दो हफ्ते में दस लाख रुपए बतौर मुआवजा देने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एम के गुप्ता तथा न्यायमूर्ति अनीस कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने मेसर्स शांति लाल अरूण कुमार साझीदार फर्म की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
मालूम हो कि, प्राधिकरण ने 16 जनवरी 2001 को मोहम्मद शकीबुद्दीन को 742.5 वर्गमीटर का प्लाट आवंटित किया। जिसे याची फर्म ने प्राधिकरण की अनुमति से 250 रूपये लेबी शुल्क जमाकर 7 जनवरी 2009 को खरीदा। शर्त के अनुसार 60 दिन में कब्जा लेना था और 50 महीने तक कब्जा नहीं लेने पर प्राधिकरण के रिजनल प्रबंधक ने नोटिस दी कि 13034 रूपये जमा करें अन्यथा प्लाट निरस्त कर दिया जाएगा। इस पर याची ने जवाब में नोटिस दी कि अप्रोच रोड नहीं बनी है इसलिए प्लाट तक पहुंच पाना कठिन है, उद्योग नहीं लग पा रहा। इसके लिए सड़क बनायें।
कनिष्ठ अभियंता को सड़क बनाने को कहा गया तो पता चला मौके पर कोई प्लाट ही नहीं है। सड़क भी नहीं है। प्राधिकरण ने राजमार्ग 27 पर प्लाट का जिक्र किया था, वहां नहीं मिला तो प्राधिकरण ने याची को अन्य प्लाट लेने या जमा राशि 6 फीसदी ब्याज सहित वापसी का विकल्प दिया। जिस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
