Madhya Pradesh

मध्य प्रदेश कृषि विपणन बोर्ड की गडबडी पर हाईकोर्ट का अहम आदेश

मप्र हाईकोर्ट

जबलपुर, 26 अगस्त (Udaipur Kiran) । हाईकोर्ट में मध्य प्रदेश कृषि विपणन बोर्ड द्वारा हजारों रिटायर कर्मचारियों के साथ गड़बड़ी करने का मामला सामने आया है यह गड़बड़ी हाईकोर्ट में पेंशन से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान समझ में आई ।

दरअसल, शहाना खान सहित अन्य चार याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई याचिका कि सुनवाई करते हुए जस्टिस विवेक जैन की सिंगल बेंच ने कहा कि मंडी बोर्ड ने कर्मचारियों को नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) से जोड़े बिना ही सेवानिवृत्त कर दिया, जोकि पूरी तरह गैरकानूनी और गंभीर लापरवाही है। जस्टिस विवेक जैन ने कहा कि यह पूरी प्रणाली ही अवैध है। हजारों कर्मचारियों को एनपीएस का लाभ दिए बिना रिटायर कर दिया गया। अब जबकि वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन्हें एनपीएस में शामिल करना संभव नहीं है, लेकिन कोर्ट ने इसकी भरपाई के कदम उठाने की ज़रूरत बताई है।

याचिकाकर्ता एक जनवरी 2005 के बाद नियमित सेवा में आए थे। उन्हें पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) का लाभ मिला। प्रतिवादियों का तर्क था कि उन्हें एनपीएस के तहत पेंशन मिलनी चाहिए। लेकिन अदालत के सामने यह सच्चाई उजागर हुई कि वास्तव में एनपीएस का खाता ही कभी नहीं खोला गया। कर्मचारियों और नियोक्ता के अंशदान की रकम को एनपीएस अथॉरिटी (पीएफआरडीए) को भेजने की बजाय मंडी बोर्ड ने अपने पास ही रखा। 22 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों से पूछा था कि कर्मचारियों को एनपीएस में कवर करने के लिए क्या कदम उठाए गए। इसके बाद दाखिल हलफनामे में सामने आया कि याचिकाकर्ताओं को एनपीएस सदस्य दिखाने का दावा गलत था।

कोर्ट ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड ने झूठे तथ्य पेश किए। कर्मचारियों की राशि बोर्ड ने अपने पास रखकर केवल कुछ मनमाना ब्याज जोड़कर लौटाया है। कर्मचारियों से ली गई रकम से न तो पीएफआरडीए को योगदान भेजा गया और न ही यह स्पष्ट है कि कर्मचारियों को उतना रिटर्न दिया गया जितना एनपीएस से मिलता। हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश शासन के पेंशन और प्रॉविडेंट फंड डायरेक्टर को जांच की जिम्मेदारी सौंपी है। जांच में डायरेक्टर यह भी देखेंगे कि अगर कर्मचारियों को समय पर एनपीएस से जोड़ा जाता तो उन्हें कितना लाभ मिलता। क्या नियोक्ता का अंशदान सही अनुपात में किया गया था और क्या उन्हें वही रिटर्न मिला जो पीएफआरडीए समय-समय पर देता है।

याचिकाकर्ताओं को आदेश की प्रति 15 दिन में पेंशन एवं प्रॉविडेंट फंड डायरेक्टर को सौंपनी होगी। पीएफ डायरेक्टर को 30 दिन में यह जांच पूरी कर रिपोर्ट देना होगी। यह रिपोर्ट 7 अक्टूबर 2025 को हाईकोर्ट में पेश की जाएगी। कोर्ट ने आदेश में यह भी लिखा है कि रिपोर्ट समय पर न देने पर डायरेक्टर के अधीन वरिष्ठ अधिकारी को व्यक्तिगत रुप से कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा।

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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक

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