– आरबीआई, टेलीकम्युनिकेशन कम्पनियों, बैंकों को बनाया पक्षकार
नैनीताल, 27 अगस्त (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड उच्च न्यायालय में बुधवार को एक सनसनीखेज मामले की सुनवाई हुई, जिसमें राज्य के जजों और पुलिस अधिकारियों के नाम से एनबीडब्ल्यू (गैर-जमानती वारंट) जारी कर जुर्माना वसूलने वाले एक बड़े स्कैम का पर्दाफाश हुआ। इस मामले में चार बैंक अकाउंट्स के जरिए लोगों से पैसे ऐंठे जा रहे थे। यह स्कैम न केवल आम लोगों को ठगने का मामला है, बल्कि इसमें न्यायाधीशों और पुलिस अधिकारियों के नाम का इस्तेमाल कर सिस्टम की विश्वसनीयता को भी चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर और जस्टिस सुभाष उपाध्याय के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले में सुरेन्द्र कुमार ने याचिका दायर की थी। कोर्ट ने मामले को बेहद गंभीर मानते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया। मामले में फर्जी जज के नाम से एनबीडब्ल्यू जारी किया गया और स्कैम के लिए पांच स्कैनर लगाए गए, जिनमें एक देहरादून के डिस्ट्रिक्ट जज और अन्य पुलिस विभाग के नाम से थे।
याची की अधिवक्ता प्रभा नैथानी ने बताया कि कोर्ट में खुलासा हुआ कि देहरादून के एडीजे के नाम से जारी एनबीडब्ल्यू पूरी तरह फर्जी है, क्योंकि न तो ऐसा कोई मामला किसी कोर्ट में विचाराधीन है और न ही हरिद्वार या देहरादून कोर्ट में इस नाम के कोई न्यायाधीश हैं। इन फर्जी अकाउंट्स के जरिए लोगों को डरा कर उनसे क्यूआर कोड से डिजिटल रूप से भुगतान लिया जा रहा था।
उच्च न्यायालय ने इस स्कैम को गंभीर पाते हुए माना कि इस तरह के फर्जीवाड़े में प्राइवेट बैंकों की भी संलिप्तता हो सकती है, क्योंकि सभी फर्जी अकाउंट्स प्राइवेट बैंकों के ही हैं।
कोर्ट ने आरबीआई, खाताधारक प्राइवेट बैंकों और टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों को इस मामले में पक्षकार बनाने का आदेश दिया। कोर्ट ने पुलिस और साइबर सेल से सवाल किया कि एक महीने पहले दर्ज की गई शिकायत पर अब तक क्या कार्रवाई हुई। मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर, 2025 को तय की गई है। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि एक महीने बीत जाने के बावजूद साइबर सेल और पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
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(Udaipur Kiran) / लता
