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व्यय प्रमाणपत्र जमा नहीं करने वाली पूजा समितियों को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

कलकत्ता हाई कोर्ट

कोलकाता, 25 अगस्त (Udaipur Kiran) । कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार से उन दुर्गा पूजा समितियों के संबंध में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है, जिन्होंने पिछले वर्ष अदालत के निर्देश के बावजूद खर्च (यूटिलाइजेशन) प्रमाणपत्र जमा नहीं किया।

न्यायमूर्ति सुजॉय पाल और न्यायमूर्ति स्मिता दास डे की खंडपीठ ने सवाल किया कि क्या ऐसी समितियों को इस वर्ष भी नया अनुदान या मानदेय दिया जा रहा है? अदालत ने यह भी पूछा, “कितनी समितियों ने खर्च प्रमाणपत्र जमा नहीं किया है? इसके बावजूद क्या उन्हें अनुदान मिल रहा है?”

राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने अदालत को बताया कि मार्च 2023 में सरकार ने रिपोर्ट दी थी कि लगभग 500 समितियों को अनुदान मिला था, जिनमें से 36 समितियों ने खर्च प्रमाणपत्र दाखिल नहीं किया। उन्होंने कहा कि अगली सुनवाई में सरकार विस्तृत जवाब पेश करेगी। मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी।

यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता सौरव दत्ता द्वारा दायर जनहित याचिका से जुड़ी है। दत्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बिकाश रंजन भट्टाचार्य और शमीम अहमद ने दलील दी कि करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विकास कार्यों में उपयोग किए जाने वाले धन को सरकार पूजा समितियों को बांट रही है। हालांकि, राज्य सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा कि यह अनुदान ‘जनकल्याणकारी’ है और सेफ ड्राइव, सेव लाइफ अभियान व कोविड-19 प्रतिबंधों जैसी पहलों में इसका उपयोग किया गया था।

गौरतलब है कि यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस वर्ष राज्यभर की करीब 40 हजार पूजा समितियों को 1.1 लाख रुपये का मानदेय देने की घोषणा की है। इसके लिए 450 करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान किया गया है। पिछले साल समितियों को 85 हजार रुपये दिए गए थे और ममता ने 2025 में इसे एक लाख तक बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन इस बार उन्होंने वादा से भी आगे बढ़ते हुए अतिरिक्त 10 हजार रुपये जोड़ दिए।

मुख्यमंत्री ने नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजकों के साथ बैैठक के दौरान पूजा समितियों के लिए बिजली बिलों पर 80 प्रतिशत छूट देने की भी घोषणा की थी।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने 2018 में पूजा समितियों को 10 हजार रुपये के अनुदान और 25 प्रतिशत बिजली बिल छूट के साथ इस पहल की शुरुआत की थी। इसके बाद यह राशि हर साल बढ़ती गई — 2019 में 25 हजार रुपये, कोविड काल में 50 हजार रुपये, फिर 2022 में 60 हजार, 2023 में 70 हजार और 2024 में 85 हजार रुपये। अब 2025 में यह बढ़कर 1.1 लाख रुपये तक पहुंच गई है, जो अब तक का सबसे अधिक अनुदान है।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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