
जबलपूर, 20 जून (Udaipur Kiran) । मप्र हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती से जुड़े नियम 12.4 को लेकर राज्य शासन से जवाब तलब किया है। यह मामला दिनेश गर्ग और अन्य 19 उम्मीदवारों की याचिका से जुड़ा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नियम भेदभावपूर्ण और संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। हाईकोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई के बाद सरकार से इस नियम के लागू होने का आधार पूछा है।
याचिका पर 19 जून को जस्टिस विवेक जैन की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा कि यह मामला गंभीर संवैधानिक प्रश्न उठाता है, जिससे हजारों उम्मीदवारों का भविष्य जुड़ा है। अदालत ने राज्य शासन, स्कूल शिक्षा विभाग और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि नियम 12.4 की संवैधानिक वैधता क्या है और क्या यह समान अवसर के सिद्धांत के अनुरुप है।
याचिकाकर्ताओं के वकील आर्यन उरमलिया ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का हवाला दिया। इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी सामान्य वर्ग की मेरिट में आता है, तो उसे अनारक्षित कोटे में समायोजित किया जाना चाहिए। यह निर्णय मेरिट और आरक्षण की सही व्याख्या का प्रतीक माना जाता है। इसके अनुसार, मेरिट पर चयनित अभ्यर्थी को केवल आरक्षित श्रेणी से होने के कारण वंचित नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस नियम के कारण आरक्षित वर्ग के होनहार उम्मीदवार जनरल कोटे से बाहर कर दिए जाते हैं। इसके अलावा, उन्हें अपनी आरक्षित कैटेगरी में भी कम अवसर मिलते हैं, क्योंकि सीटें सीमित होती हैं। यानी वे अपनी प्रतिभा के बावजूद न सामान्य वर्ग में चयनित हो पाते हैं, न आरक्षित श्रेणी में अपनी स्थिति मजबूत कर पाते हैं।
इस याचिका में तर्क रखा गया कि यह नियम संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आरक्षित वर्ग के कई छात्रों ने चयन परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। फिर भी, टेट में 90 से कम अंक के कारण उन्हें जनरल कोटे से बाहर कर दिया जाता है। यह व्यवस्था अव्यवहारिक और पक्षपातपूर्ण है। इस मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख दी गई है।
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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक
