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हाईकोर्ट ने एमडीआई अस्पताल के निदेशक पद के स्टेटस को लेकर सरकार के सचिव से मांगी आदेश रिपोर्ट

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–कहा, इस बीच मनोहर दास मंडलीय नेत्र अस्पताल के सभी वित्तीय एवं प्रशासनिक कार्य एमएलएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल करेंगे –निदेशक पद पर डाक्टर अपराजिता चौधरी की नियुक्ति स्थगित

प्रयागराज, 20 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा सचिव को निर्देश दिया है कि वह कानून के आधार पर निर्णय लेकर कोर्ट को बताएं कि क्या मनोहर दास मंडलीय नेत्र संस्थान में निदेशक का पद एक स्वतंत्र एवं स्वीकृत पद हैं। कोर्ट ने इस पद के स्टेटस को लेकर सम्बंधित सचिव से उनका सीलबंद निर्णय याचिका की अगली सुनवाई 3 सितम्बर को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि निर्णय प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो सचिव उस दिन कोर्ट में हाजिर रहेंगे।

हाईकोर्ट ने इस बीच निदेशक पद पर उठे विवाद को देखते हुए मनोहर दास मंडलीय नेत्र अस्पताल के सभी वित्तीय एवं प्रशासनिक कार्य मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज के प्रिंसिपल को करने को कहा है। जबकि वहां के शैक्षणिक कार्य को हाईकोर्ट ने याची विभागाध्यक्ष को देखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने निदेशक एमडीआई रीजनल अस्पताल पद पर डाक्टर अपराजिता चौधरी की नियुक्ति स्थगित कर दी है।

यह आदेश जस्टिस अजित कुमार ने मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में नेत्र विभागाध्यक्ष डाक्टर संतोष कुमार व चार अन्य डाक्टरों की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया है। हाईकोर्ट ने मनोहर दास मंडलीय नेत्र अस्पताल में निदेशक कौन होगा और निदेशक के स्टेटस को लेकर याचिका में उठाए गए मुद्दों को लेकर आदेश पारित किया है।

कोर्ट ने आदेश में दो मुद्दे विरचित किया गया है। एक तो यह कि क्या मनोहर दास मंडलीय नेत्र संस्थान के निदेशक का पद एक स्वतंत्र एवं स्वीकृत पद हैं और प्रचलित रूल्स के अनुसार इस पद पर विशेष पे स्केल एवं अन्य भत्ते प्राप्त है। तथा दूसरा यह कि क्या निदेशक का पद एम एल एन मेडिकल कॉलेज का हिस्सा है और मेडिकल कॉलेज नेत्र विभागाध्यक्ष, एम डी आई मंडलीय अस्पताल के निदेशक पद को विशेष पे स्केल एवं अन्य भत्ते के साथ धारण करेगा।

हाईकोर्ट ने याची तथा विपक्षी दोनों डाक्टरों को सरकार के सचिव के समक्ष अपना अपना पक्ष प्रत्यावेदन के साथ 31 जुलाई से पूर्व प्रस्तुत करने को कहा है। कोर्ट ने सचिव को निर्देश दिया है कि वह कानून के अनुसार एक सकारण व विस्तृत आदेश 30 दिन के अंदर पारित करें। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि सचिव सीलबंद रिपोर्ट प्रस्तुत करने में 3 सितम्बर को विफल रहते हैं तो उन्हें केस की सुनवाई के दिन हाजिर होना होगा।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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