
–बरेली में पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
प्रयागराज, 29 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में माना है कि नाबालिग के खिलाफ भरण-पोषण की मांग करने वाली सीआरपीसी की धारा 125 और 128 के तहत आवेदन विचारणीय हैं।
बाल विवाह और नाबालिग पति के खिलाफ भरण-पोषण के दावे से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने कहा, नाबालिग के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 और सीआरपीसी की धारा 128 के तहत आवेदन स्वीकार करने पर कोई रोक नहीं है। कोर्ट ने बरेली के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका खारिज करते इतना जरूर किया है कि भरण पोषण की राशि लगभग आधी कर दी है।
बरेली निवासी याची अभिषेक सिंह यादव का विवाह शीला देवी (प्रतिपक्षी) के साथ 10 जुलाई, 2016 को हुआ था। उन्हें 21 सितम्बर 2018 को संतान की प्राप्ति हुई। फिर विवाद की स्थिति बनी। इस पर पत्नी ने विशारतगंज थाने में दहेज उत्पीड़न का भी केस दर्ज कराया। शादी के समय याची की आयु 13 साल बताई गई। जब वह लगभग 16 वर्ष का था, तब पत्नी ने उससे भरण पोषण की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दायर किया। अपर प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय (एक) बरेली ने पत्नी के लिए पांच हजार और बच्चे के लिए चार हजार रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इसे हाईकोर्ट में यह कहते हए चुनौती दी गई कि पुनरीक्षणकर्ता नाबालिग है, इसलिए उसके विरुद्ध धारा 125 के तहत कोई आवेदन दायर नहीं किया जा सकता। यह केवल उसके अभिभावक के माध्यम से ही दायर किया जा सकता है।
यह भी दलील दी गई कि पत्नी ने बिना किसी उचित कारण के पुनरीक्षणकर्ता के साथ रहने से इनकार कर दिया था, इसलिए वह धारा 125(4) के अनुसार भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। हाईकोर्ट ने पाया कि दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय नौ में यह प्रावधान नहीं है कि नाबालिगों के विरुद्ध आवेदन उनके अभिभावकों के माध्यम से ही दायर करना जरूरी है। न्यायालय ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार, कोई भी सक्षम व्यक्ति अपनी पत्नी या बच्चे (वैध-अवैध) का भरण-पोषण करने से इन्कार करता है तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन कर सकता है, जो तथ्यों पर विचार करने के बाद एक निश्चित राशि प्रदान करेगा।
कोर्ट ने कहा कि याची का हाईस्कूल प्रमाणपत्र निचली अदालत में उपलब्ध नहीं था। आवेदन की तिथि पर वह नाबालिग था, लेकिन निर्णय की तिथि तक वयस्क हो चुका था। अपर प्रधान न्यायाधीश के निष्कर्षों को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने कहा, यह मानते हुए कि बालिग होने के बाद पति मजदूर था, उसकी मासिक आय 18,000 रुपये होगी। रजनेश बनाम नेहा मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने भरण-पोषण राशि घटाकर पत्नी के लिए 2500 रुपये और बच्चे के लिए 2000 रुपये कर दी। यह कुल 4500 रुपये है जो पति की आय का 25 प्रतिशत है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि कोई बकाया राशि है तो उसकी गणना उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित राशि के आधार पर की जाएगी।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
