
जोधपुर, 21 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान की कोर्ट में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने साढ़े चार साल में 13 बार सरकार को निर्देश जारी किए लेकिन समाधान नहीं निकला। इस पर राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्रसिंह भाटी और जस्टिस दिनेश मेहता की बेंच ने नाराजगी जताई है। मामले में अगली सुनवाई 26 अगस्त को निर्धारित की गई है। कोर्ट ने कहा है कि अगर उचित जवाब नहीं मिला तो वे उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे। जो काम नहीं कर रहे।
कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि राज्य के महाधिवक्ता और एएसजी अब तक किए गए कार्यों के बारे में बताएं। अधिकारियों की सूची भी अगली सुनवाई से पहले कोर्ट को उपलब्ध कराएं। यदि उनके द्वारा कार्य नहीं किया गया है तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। ये भी बताएं। कोर्ट में यह भी सामने आया कि नए जिले बन गए लेकिन वहां न्यायालयों के लिए इमारत नहीं बनी हैं। जैसलमेर, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, जोधपुर जिला कोर्ट, आबू रोड, राजगढ़ व अजमेर में यह समस्या बहुत है।
न्यायिक काम में हो रही दिक्कत
कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य और केंद्र सरकार की बार-बार गलती से न्यायिक प्रक्रिया में दिक्कत हो रही है। अब सरकार के बड़े अधिकारी महाधिवक्ता और सॉलिसिटर जनरल के जरिए बताएं कि अब तक क्या किया है। आगे क्या करने का प्लान है। जो अधिकारी कोर्ट के आदेश नहीं मान रहे, उनकी लिस्ट भी देनी होगी। बताना होगा कि उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी। दरअसल बांसवाड़ा बार एसोसिएशन की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई थी। इस याचिका के साथ छह और याचिका जुड़ी हैं। इसमें वकीलों ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कई बार कहा है कि न्यायालयों के लिए भवन, मूलभूत सुविधाएं, परिवादियों, अधिवक्ताओं और जजेज के लिए मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है लेकिन केंद्र और राज्य सरकार इसकी अनदेखी कर रही है। कोर्ट को सिर्फ आश्वासन दिए जा रहे हैं।
174 जगह जमीन के मामले अटके
हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील डॉ. सचिन आचार्य ने बताया कि न्यायालय भवन और न्यायिक आवास के लिए पूरे प्रदेश में 174 जगह जमीन के मामले अलग-अलग स्तर पर राज्य सरकार में अटके हुए हैं। जबकि, मई 2024 में ही यह तय हो गया था कि न्यायालय भवनों के लिए जमीनों के मामले छह महीने में हल हो जाएंगे। इसका मुख्य सचिव व अन्य अधिकारियों द्वारा भी अनुमोदन किया गया था। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। इनमें 21 मामले राज्य स्तर पर, 23 मामले निदेशक, स्थानीय निकाय में और 130 मामले कलेक्टर के पास लटके हुए हैं।
30 करोड़ रुपए अभी भी रुके हुए
न्यायालय और न्यायिक आवास बनाने के लिए 324.29 करोड़ रुपए की मंजूरी की जरूरत है लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक स्वीकृति नहीं दी है। मई 2024 में कहा गया था कि 40 करोड़ रुपए देंगे, लेकिन अभी तक सिर्फ 10 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। बाकी 30 करोड़ रुपए अभी भी रुके हुए हैं। जो इमारतें बन रही हैं, उनमें भी 59.28 करोड़ रुपए की दोबारा मंजूरी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार मंजूरी देने में 2 से 4 साल लगा देती है। इस बीच सामान महंगा हो जाता है। सरकार का अपना नियम है कि हर साल सात प्रतिशत महंगाई बढ़ाकर पैसे देने चाहिए। वकीलों के हॉल और चैंबर बनाने के लिए 85.04 करोड़ रुपए की जरूरत है। लेकिन मंजूरी नहीं मिली। तिजारा, रायसिंहनगर, संगोद जैसी जगहों पर कोर्ट भवन तो बन गया। लेकिन वकीलों के हॉल के लिए 39.37 करोड़ रुपए की मंजूरी अभी भी नहीं मिली।
(Udaipur Kiran) / सतीश
