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बहुचर्चित कोयला घोटाला : आरोपिताें की संपत्ति के अस्थायी नियंत्रण के खिलाफ हाईकोर्ट में लगी याचिका पर हुई सुनवाई 

छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट

बिलासपुर, 3 जुलाई (Udaipur Kiran) । छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोयला घोटाले मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की सूर्यकांत तिवारी और सौम्या चौरसिया सहित परिवार के लोगों की संपत्ति अटैच किए जाने को हाइकोर्ट में चुनौती दी है। वहीं केजेएसएल कोल पावर और इंद्रमणि मिनरल्स में अपने अधिवक्ता के माध्यम से याचिका लगाई, जिस पर लगातार सुनवाई के बाद सभी 10 याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और विभूदत्त गुरु की डबल बेंच में बुधवार काे सभी पहलुओं पर लंबी बहस के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है।

दरअसल ईडी रायपुर ने अवैध कोयला लेवी घोटाले से संबंधित मामले में सूर्यकांत तिवारी और अन्य से संबंधित पीएमएलए, 2002 के प्रावधानों के तहत 30 जनवरी 2025 को कुल मिलाकर 49.73 करोड़ रुपये मूल्य की 100 से अधिक चल और अचल संपत्तियों को अंतिम रूप से कुर्क किया है, जिसमें बैंक बैलेंस, वाहन, नकदी, आभूषण और जमीन शामिल हैं। इसके सूर्यकांत तिवारी के भाई रजनीकांत तिवारी, कैलाशा तिवारी, दिव्या तिवारी की भी संपति अटैच की गई है। वहीं इसके अलावा सौम्या चौरसिया उनके भाई अनुराग चौरसिया, मां शांति देवी, समीर विश्नोई और अन्य ने अस्थायी नियंत्रण के खिलाफ याचिकाएं लगाई। कोर्ट में संबंधित अपीलकर्ताओं के वकील हर्षवर्धन परगनिहा, निखिल वार्ष्णेय, शशांक मिश्रा, अभ्युदय त्रिपाठी और अन्य को सुना। जिसके बाद प्रतिवादी के वकील डॉ. सौरभ कुमार पांडे को भी सुना गया। संबंधित अपीलकर्ताओं की ओर अधिवक्ताओं और प्रतिवादी की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पूरी हो गई हैं। कोर्ट ने इसे निर्णय के लिए सुरक्षित रख दिया है। इस पूरी सुनवाई के दौरान ईडी के वकील ने एक डायरी का जिक्र किया, जिसमें सूर्यकांत तिवारी के निर्देश पर कोल ट्रेडर्स से जुड़ी पूरी जानकारी रखी जाती थी। इसमें यह स्पष्टता थी कि किस तरह से कोल लेवी के दौरान लेनदेन हुआ।

अधिवक्ता हर्षवर्धन परगनिहा ने गुरुवार काे बताया कि किस तरह से भूतत्व और खनिकर्म के तत्कालीन निदेशक समीर विश्नोई आईएएस को प्रभावित करने में कामयाब रहे और 15 जुलाई 2020 का एक सरकारी आदेश जारी करवाया, जो परिवहन परमिट जारी करने की ऑनलाइन प्रणाली को मैन्युअल प्रणाली में परिवर्तित करके इस जबरन वसूली प्रणाली बन गई। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य में परिवहन किए जाने वाले प्रत्येक टन कोयले पर 25 रुपये वसूलने के लिए जबरन वसूली का नेटवर्क शुरू किया। कई आईएएस भी इस साजिश में शामिल थे और जबरन वसूली का धंधा चलाने में सूर्यकांत तिवारी की मदद कर रहे थे। समीर विश्नोई ने अपनी कमाई को स्राेत बता नहीं पाया। जबकि छापे में उसके घर से 22 लाख रुपये मिले। ईडी के वालों ने सेक्शन 50 सबसेक्शन 3 और 4 का जिक्र किया और कहा कि इन सब बातों का रिकॉर्डेड स्टेटमेंट है। पूछताछ में अपने बयान में सौम्या चौरसिया के चचेरे भाई अनुराग चौरसिया ने बताया कि झारखंड में रहता है। किसी होटल में मैनेजर होना बताया और अपनी महीने की कमाई 20-22 हजार बताई। होटल के डायरेक्टर ने भी यही बताया। वहीं पूछताछ में उसने सब्जी बेचकर लाखों कमाने की जानकारी बताई। लेकिन किस वेंडर से खरीद हुई नहीं बताया। उसने अपने करेक्ट साेर्स ऑफ इनकम को नहीं बताया। अधिवक्ता ने बताया कि सौम्या के भाई अनुराग ने छत्तीसगढ़ में जमीन खरीदी नहीं, लेकिन लेयरिंग की है।

उनकी मां शांति देवी के नाम पर सेवती जिला दुर्ग में जमीन ली गई। शांति देवी ग्रहणी है, उनके कमाई का स्राेत नहीं बताया। इस जमीन के खिलाफ फरोख्त से जुड़े सह आरोपित दीपेश टोंक ने 30 लाख दिया। जब 10 साल की इनकम टैक्स की जांच की गई और पूछताछ में कहा अमरूद की पैदावार अच्छी हुई, 30 लाख के अमरूद बेचे। कैसे और किसको बेचा जिसका सही जवाब नहीं मिला ? वहीं जो बिल बाउचर पेश किए गए सभी फर्जी मिले। बुधवार को हुई सुनवाई में अधिवक्ता ने कोर्ट के सामने यह तथ्य रखा कि दीपेश टोंक ने अपनी सारी संपत्ति बेच दी। वहीं उसने दुर्ग की 22 कमरे का फॉर्म हाउस को फ्री में दे दिया और शांति देवी के यहां नौकरी कर रहा है। वहीं केजेएसएल के सुनील अग्रवाल प्रमोटर हैं। जिसकी भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए। इंद्रमणि उद्योग के मालिक आशीष कुमार अग्रवाल राजकुमार अग्रवाल से आरोपी रजनीकांत तिवारी ने कोल वाशरी खरीदा है। इंद्रमणि मिनरल्स का भी बहुत बड़ा रोल है। ये स्पष्ट है कि क्यों अटैच की गई..? सेक्शन 50 में सभी के बयान रिकॉर्ड किया है। इसलिए जांच के दौरान जब इन दोनों कंपनियों, इंडस और सत्या पावर के निदेशकों को बुलाया गया, तो उन्होंने धारा 50 के तहत बयान दिया और उन्होंने कहा कि हमने इन कोल वॉशरियों को सूर्यकांत के दबाव में बेचा है और विचार राशि 96 करोड़ थी, लेकिन केवल 34 करोड़ का भुगतान किया जा रहा था, इसलिए वह उनके प्रमोटर बन गए और बाकी का पैसा उन्हें कभी नहीं दिया गया। ईडी के अधिवक्ता ने अपनी दलील प्लेसमेंट, लेयरिंग और इंटीग्रेशन से शुरू की और कहा इस तरह से वे इन संपत्तियों को लेयर किया है। वहीं अधिवक्ता परगनिया ने कहा ये मामले डायरी एंट्री पर निर्भर है। वहीं बिना शो कॉस नोटिस के उनके पक्षकार की प्रोबर्ली मनी अटैच कर दी। इसके अलावा सभी अधिवक्ता ने अपने पक्षकारों की तरफ से अपनी दलील पेश की। हाइकोर्ट की बैंच ने सभी पहलुओं को सुनने के बाद कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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(Udaipur Kiran) / Upendra Tripathi

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