
झाबुआ, 7 सितंबर (Udaipur Kiran) । श्रीमद्भागवत कथा का सारभूत तत्व है, श्री भगवान् के पावन नामों को ह्रदय में धारण करते हुए द्रढ़ भाव से स्मरण की और बढ़ना। किसी भी युग में भगवान् की प्रेम प्राप्ति का इससे अधिक उत्तम अन्य कोई साधन नहीं है, इसलिए हमें प्रभु के शरणागत होकर द्रढ़ता पूर्वक अपने ह्रदय में प्रभु नाम को धारण करना चाहिए। भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में प्रेम और हरे कृष्ण महामंत्र में नित्य स्थिति में ही श्रीमद्भागवत कथा श्रवण की सार्थकता निहित है,और यह तभी संभव है जब हम भगवान् श्री कृष्ण से अपना कोई संबंध बना लें, उन्हें अपना मान लें, और पूरी निष्ठा से महामंत्र का स्मरण करें।
उक्त विचार श्रीमद्भागवत कथावाचक डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के दौरान व्यास पीठ से व्यक्त किए गए। शर्मा मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले के थान्दला में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अंतर्गत आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवतकथा के विश्रांति की वेला में रविवार को कथा वाचन कर रहे थे। उन्होंने कथा श्रवण कर रहे श्रोताओं से निवेदन करते हुए कहा कि सात दिवस तक जो कथा श्रवण की गई है, वह व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हम नियम से और निष्ठा पूर्वक श्री भगवान् के होकर उनके पावन नाम से जुड़ें, और श्रीकृष्ण के चरणों में हमारा प्रेम हो, यही कथा श्रवण की सार्थकता है।
शर्मा ने कहा कि वेदों और उपनिषदों का सार श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवत है, और इनका सारभूत तत्व है प्रभु नाम स्मरण। भगवन् नाम की महिमा का बखान करते हुए उन्होंने कहा कि इस कलिकाल में नाम के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं दिखाई देता है। बड़े बड़े ऋषि मुनि और तपस्वियों ने भी भगवान् नाम स्मरण के माध्यम से ही इस संसार सागर को पार कर लिया।
श्रीमद्भागवत में स्थान स्थान पर नाम स्मरण का महत्व निरूपित किया गया है। श्रीमद्भागवत कथा के अमर गायक श्री सूतजी महाराज शौनकादि इठ्यासी हजार ऋषियों को श्रीमद्भागवत कथा विश्राम की वेला में उपदेश करते हुए कहते हैं-
नाम संकीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम्।प्रणामो दुःखशमनस्तं नमामि हरिं परम्।।
अर्थात, सूतजी महाराज कहते हैं शौनकजी! जिन भगवान् के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान् के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों में प्रणति सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुःखों को शांत कर देती है, उन्हीं परमतत्वस्वरूप श्री हरि को में नमस्कार करता हूं।
गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज श्री रामचरितमानस में नाम का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि–
सब भरोसा तजि जो भज रामहि। प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि।।सोई भव तर कछु संशय नाहीं। नाम प्रताप प्रकट कलि माहीं।।
अर्थात सारे भरोसे त्यागकर जो श्रीरामजी को भजता है, और प्रेम सहित उनके गुण समूहों को गाता है वहीं भव सागर से पार हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है। नाम का प्रताप कलियुग में प्रत्यक्ष है।
शर्मा ने नाम महामंत्र की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा कि वैसे तो भगवान् के सब नाम ही महिमावंत है, और सबमें भगवान् की दिव्य शक्ति निहित है, किंतु उपनिषद सहित पुराणों में उल्लेखित सौलह शब्दों और बत्तीस अक्षरों से युक्त नाम महामंत्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।)की महिमा अनिर्वचनीय है। उपरोक्त नाम महामंत्र इस कलिकाल में हम सबके हेतु जपनीय, कीर्तनीय एवं स्मरणीय है। हमारे विभिन्न धर्म शास्त्रों के अनुसार यह महामंत्र परम प्रभावशाली, सरल, सहज साधन है। हरे कृष्ण महामंत्र की महिमा का संपूर्ण रुप से प्रतिपादन हम मनुष्य तो क्या, देवता और यहां तक कि स्वयं ब्रह्मा भी नहीं कर सकते, किंतु हमारे वैदिक शास्त्रों और पुराणों में निहित वर्णन से हमें नाम की महिमा के बारे में महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। कलिकाल में हमारे शास्त्रों में भगवत् प्राप्ति के जो जो साधन बताए गए हैं, उनमें मुख्य साधन नाम संकीर्तन और जप ही है। वैसे तो चारों युगों में भगवन् नाम संकीर्तन को ही श्री भगवान् की प्रेम प्राप्ति का श्रेष्ठतम साधन निरुपित किया गया है, किंतु कलिकाल में नाम स्मरण का और भी अधिक महत्व बताया गया है, और कहा गया है कि कलिकाल में हमारा केवल एक ही सहारा है, और वह है, भगवान् का नाम।
शर्मा ने कहा कि कलिसंतरणोपनिषद के साथ ही जहां हमारे पुराणों में नाम महिमा का वर्णन मिलता है, वहीं नामावतार भगवान् श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और सिद्ध महायोगी श्रीसीताराम दास ओंकारनाथ महाराज पागल बाबा ने इसे मोक्षदायक और सांसारिक कामनाओं को पूर्ण करने वाला साधन कहा है, और इसे सर्वकाल में जपनीय और स्मरणीय बताया है। गौरांग दैव श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि इस महामंत्र के निष्काम भाव से नित्य, निरंतर जप और स्मरण से मनुष्य द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की प्राप्ति भी संभव है। यह नाम साधन भगवान् के प्रेम की प्राप्ति का सरलतम और श्रेष्ठ उपाय है, और यही नहीं बल्कि सांसारिक मनोकामनाएं भी यदि मन में हैं, तो वह भी इस महामंत्र के अहर्निष जप, स्मरण से पूर्ण हो सकती है।
आज कथा के दौरान मुख्य रूप स भक्तियोग की महिमा, भगवान् श्री शुकदेव जी महाराज का अंतिम उपदेश, ध्यान विधि एवं ज्ञान, कर्म एवं भक्ति योग का महत्व निरूपित करते हुए भक्ति, ज्ञान और यम नियमादि साधनों के बारे में बताया गया, साथ ही भगवान् के अवतारों का वर्णन करते हुए श्रीमद्भागवत में उल्लेखित भागवत धर्मों का निरुपण किया गया।
(Udaipur Kiran) तोमर
