
ग्वालियर, 13 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश के ग्वालियर नगर और उसके आस-पास के अंचल की आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उन्नति की पहचान बन चुका श्रीमंत माधवराव सिंधिया ग्वालियर व्यापार मेला, अपने गौरवशाली 120 वर्ष पूरे कर चुका है। यह मेला न केवल ग्वालियर सहित सम्पूर्ण मध्यभारत यहाँ तक देश की व्यापारिक धड़कन है, बल्कि ग्रामीण समृद्धि और स्थानीय उत्पादों के संवर्धन की एक जीवंत परंपरा भी है। इस साल ग्वालियर मेला 25 दिसम्बर से 25 फरवरी तक लगने जा रहा है। मेले की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।
रियासतकाल से आधुनिक युग तक की गौरव यात्रा
वर्ष 1905 में ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक महाराज माधौराव सिंधिया (प्रथम) ने इस मेले की नींव “मेला मवेशियान” के रूप में रखी थी। पशुधन की नस्ल सुधारने, किसानों और पशुपालकों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने तथा ग्वालियर अंचल के उत्पादों को देश के अन्य भागों तक पहुँचाने के उद्देश्य से यह मेला शुरू किया गया था।
उस समय यह ग्वालियर मेला सागरताल के 50 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में आयोजित होता था, जहाँ पानी की सुविधा और ग्रामीण संपर्क इसकी बड़ी ताकत थी। बढ़ती लोकप्रियता के साथ, यह मेला व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1918 में इसे वर्तमान रेसकोर्स रोड स्थित 104 एकड़ भूमि पर स्थायी रूप से स्थापित किया गया और इसे नया नाम मिला — “व्यापार मेला एवं कृषि प्रदर्शनी”।
आरंभ में मेला अवधि 20 दिसंबर से 14 जनवरी तक तय की गई। एक ऐसा समय जब ग्वालियर की सर्द हवा व्यापारिक उत्साह से सराबोर हो उठती है।
व्यवसाय और संस्कृति का संगम
समय के साथ ग्वालियर मेला केवल व्यापारिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि यह संस्कृति, मनोरंजन और जनसंवाद का महाकुंभ बन गया। ग्रामीण कलाकारों से लेकर राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों का मंच यह मेला बना है। यह आयोजन हर वर्ग को जोड़ता है। वर्ष 1934 में ‘काउन्सिल ऑफ रीजेंसी’ ने इसके प्रबंधन के लिए “मेला व नुमायश ग्वालियर” की रूपरेखा बनाई, जिसे बाद में “ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल, एग्रीकल्चरल एंड आर्ट्स एग्ज़ीबिशन” के नाम से प्रसिद्धि मिली।
राज्य स्तरीय गौरव और ऐतिहासिक पड़ाव
ग्वालियर मेला को 23 अगस्त 1984 को राज्य स्तरीय ट्रेड फेयर का दर्जा प्राप्त हुआ। इसके बाद इसकी पहचान और प्रभाव दोनों कई गुना बढ़ गए। वर्ष 1967-68 में मेले की हीरक जयंती मनाई गई। इसी तरह वर्ष 1982-83 में प्लेटिनम जयंती एवं वर्ष 2004-05 मेले ने अपनी शताब्दी वर्षगांठ मनाई। शासन द्वारा वर्ष 2002 में मेले का नाम “श्रीमंत माधवराव सिंधिया व्यापार मेला” घोषित किया गया। इसके बाद 30 दिसम्बर 1996 को लागू “ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण अधिनियम” के तहत इसका प्रबंधन स्वतंत्र प्राधिकरण को सौंपा गया, जिससे मेले के संचालन और विकास को संस्थागत स्वरूप मिला।
ग्वालियर मेला : परंपरा से तकनीक तक
आज ग्वालियर मेला केवल परंपरा का प्रतीक नहीं, बल्कि नवाचार, आत्मनिर्भरता और डिजिटल युग की पहचान भी है। ऑनलाइन आवंटन प्रणाली, थीम आधारित पवेलियन और प्रदेशभर के उद्योगों की सहभागिता इसे आधुनिकता से जोड़ते हैं। साथ ही लोककला, हस्तशिल्प, झूले, और सांस्कृतिक कार्यक्रम इसकी जीवंतता को बनाए रखते हैं।
गौरव की परंपरा, विकास की राह
ग्वालियर मेला ने एक सदी से अधिक की यात्रा में न केवल व्यापार का विस्तार किया है, बल्कि इसने ग्वालियर की पहचान, संस्कृति और आत्मा को जीवित रखा है। यह मेला उन हाथों को मंच देता है जो मिट्टी से सोना बनाते हैं, और उन सपनों को दिशा देता है जो आत्मनिर्भर भारत की नींव हैं। इसलिये कहा जा सकता है कि ग्वालियर मेला केवल एक आयोजन नहीं, यह ग्वालियर की आत्मा है, जो हर वर्ष नवप्रेरणा के साथ गूंज उठती है।
(Udaipur Kiran) तोमर
