ग्वालियर, 20 जुलाई (Udaipur Kiran) ।जैसी श्रद्धा होती है, वैसा ही ज्ञान होता है। जैसा ज्ञान होता, वैसा पुरुषार्थ होता है, इन्हें जीव को अपने आचरण में उतारना चाहिए। धर्म व ध्यान से आत्मा पवित्र होती है। जीव का कल्याण सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र और तप से होता है। जब तीनों को समान रूप से एकता में पिरोया जाए, तो मोक्ष के भाव तैयार होते हैं। यह विचार आचार्यश्री सुबल सागर महाराज ने रविवार को नई सडक़ स्थित चंपाबाग मे धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
आचार्यश्री ने कहा कि अशुचि भावना में जीव शरीर को पवित्र मानता है, आत्मा को नहीं। बिना धर्म ज्ञान के शरीर का स्वयं अवलोकन करोगे तो स्वयं से घृणा होगी। इसलिए समय का उपयोग करो और पुरुषार्थ करो। पुरुषार्थ अच्छा होगा तो फल भी अच्छा होगा। आत्मा से प्रेम करो, जो पवित्र है। धर्म ध्यान से ही आत्मा पवित्र होती है। पंच इंद्रियों के विषयों में व्यस्त होना नरक के द्वार खोलना है। धर्मात्मा वही है, जो विषम परिस्थितियों में भी धर्म को नहीं छोड़ता। प्रवचन के बाद मां जिनवाणी ओर आचार्यश्री के चरणों में महाअघ्र्य जैन समाज के लोगों ने समर्पित करे। वही प्रवचन से पूर्व आचार्यश्री के चरणों में श्रीफल निर्मल पाटनी, प्रवीण गंगवाल, कमलेश जैन, राजमल जैन, विनय कासलीवाल, वीरेंद्र बाबा, पंकज छाबड़ा, प्रमोद जैन, योगेश बोहरा, विकास जैन आदि ने समर्पित किए।
प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि आचार्यश्री सुबल सागर महाराज के सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य विवेक शास्त्री के मार्ग दर्शन में चातुर्मास स्थल जिन सहस्त्रनाम विधान में महिलाओं और पुरुषों ने भगवान जिनेंद्र के ऊपर छत्र समर्पित किए। वहीं सुबह बरासो वाले भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा का कलशों से अभिषेक जैन समाज के लोगो ने जयकारों के साथ किया। वही शांतिधारा शिवदयाल जैन परिवार द्वारा की गई। वही आचार्यश्री ने जिन सहस्त्रनाम विधान में संगीतमय पूजन में महिला, पुरुष और समाजजनों ने भक्ति करते हुए भगवान जिनेंद्र के समक्ष महाअघ्र्य समर्पित किए। पूजन के बाद विश्वशांति महायज्ञ में आहुति दी।
(Udaipur Kiran) / शरद शर्मा
