Madhya Pradesh

ग्वालियरः किसानों को बताए गाजरघास नियंत्रण के तरीके

गाजरघास जागरूकता सप्ताह के तहत रेंह का पुरा में कार्यक्रम आयोजित

– गाजरघास जागरूकता सप्ताह के तहत रेंह का पुरा में कार्यक्रम आयोजित

ग्वालियर, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में गाजरघास जागरूकता सप्ताह के तहत जनजागरण गतिविधियां आयोजित की गईं। सप्ताह भर चले इस कार्यक्रम के आखिरी दिन शुक्रवार को जिले के घांटीगांव विकासखंड के ग्राम रेंह का पुरा गाँव में कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा गाजरघास जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में गाजरघास के उन्मूलन के उपाय, जैविक नियंत्रण उपाय, जैसे मैक्सिकन बीटल (ज़ाइगोग्रामा बाइकोलोराटा) की पहचान, गाजरघास से खाद तैयार करना एवं उसका उपयांग आदि पर किसानों को विस्तृत जानकारी दी गई।

ज्ञात हो कि कृषि विज्ञान केन्द्र, ग्वालियर द्वारा गाजरघास जागरूकता सप्ताह की शुरूआत गत 16 अगस्त को कृषि विज्ञान केन्द्र परिसर से गाजरघास पर रासायनिक उर्वरकों का छिड़काव कर किया गया था। रेंह का पुरा में आयोजित हुए कार्यक्रम में शुक्रवार को कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शैलेन्द्र सिंह कुशवाह ने जानकारी दी कि गाजरघास खरपतवार हमारी फसल भूमि, मनुष्यों, पशुओं और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने गाजरघास खरपतवार के भौतिक, जैविक और रासायनिक प्रबंधन रणनीतियों की जानकारी दी।

कुशवाह ने बताया कि फूल आने से पहले गाजरघास खरपतवार के बायोमास का उपयोग पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने खरपतवार के पारिस्थितिकीय प्रबंधन के लिए गाजरघास खरपतवार के प्राकृतिक प्रतिस्पर्धियों / शत्रुओं की पहचान करने की आवश्यकता पर भी चर्चा की।

केन्द्र की वैज्ञानिक (कृषि वानिकी) डॉ. अमिता शर्मा ने जानकारी दी कि गाजरघास खरपतवार का उपयोग जैविक और प्राकृतिक खेती में हरी खाद, लाइव मल्च व खाद के रूप में किया जा सकता है। कार्यक्रम में प्रतिभागियों विशेषकर बच्चों ने भी विशेषज्ञों के साथ अपने विचार और प्रश्न साझा किए।

कृषि केन्द्र के वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) डॉ. राजीव सिंह चौहान ने प्रतिभागियों को गाजरघास के हानिकारण प्रभाव बताते हुए, इसके नियंत्रण करने के जैविक एवं रासायनिक विधियों को विस्तारपूर्वक समझाया। जिसमें खरपतवार की छोटी अवस्था में 15 प्रतिशत नमक का घोल बनाकर छिड़काव करना, फूल आने से पहले एवं अधिक मात्रा में फैल जाने पर खाली अफसलीय क्षेत्रों में मेड़ पर ग्लाइफोसेट 41 फीसदी दवा का छिड़काव करना शामिल है। उन्होंने नाडेप विधि से खाद बनाने की जानकारी भी दी।

कार्यक्रम के अंत में किसानों की धान, बाजरा, मूंग, तिल एवं अन्य फसलों में आने वाली समस्याओं का भी समाधान वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। गाजरघास जागरूकता सप्ताह कार्यक्रम में कुल 150 कृषकों एवं छात्रों ने भाग लिया। डॉ. चौहान ने चर्चा के अंत में सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

(Udaipur Kiran) तोमर

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