
गोरखपुर, 29 नवंबर (Udaipur Kiran) । दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने शोध जगत में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज करते हुए भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (ICPR), नई दिल्ली से “नाथपंथ में तीर्थस्थलों के भौगोलिक एवं दार्शनिक निहितार्थ” विषयक दो वर्षीय शोध-परियोजना के लिए 10 लाख रुपये का अनुदान प्राप्त किया है। परियोजना का संचालन भूगोल विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अंकित सिंह (प्रधान अन्वेषक) के नेतृत्व में किया जाएगा। यह शोध नाथपंथ की प्राचीन परंपरा को आधुनिक शोध-पद्धतियों के साथ जोड़ते हुए भारतीय ज्ञान-परंपरा के एक नए अध्याय की नींव रखेगा।
इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्यों में नाथ पंथ के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का समग्र भौगोलिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक विश्लेषण शामिल है। शोध-दल का प्रमुख लक्ष्य यह समझना है कि नाथ पंथ की परंपरा में स्थान, भू-दृश्य और तीर्थ का क्या दार्शनिक महत्व है तथा किस प्रकार “स्थल-दर्शन” (Place Philosophy), “स्थानिक ज्ञानमीमांसा” और “भौगोलिक चेतना” नाथदर्शन की मूल अवधारणाओं से जुड़ती हैं। परियोजना के अंतर्गत भारत और नेपाल सहित दक्षिण एशिया के उन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाएगा, जहाँ नाथ परंपरा का ऐतिहासिक प्रसार दिखाई देता है। शोध का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य नाथपंथ के इन स्थलों को जोड़ते हुए एक संभावित “नाथ तीर्थ-सर्किट” का प्रस्ताव प्रस्तुत करना भी है, जो भविष्य में सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पर्यटन के लिए एक सुव्यवस्थित मॉडल प्रदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त नाथपंथ की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत—जैसे नाथपद गान, अनुष्ठान, लोककथाएं और गुरु-शिष्य परंपरा—का संरक्षण भी परियोजना के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है।
पद्धति की दृष्टि से यह शोध विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि इसमें पारंपरिक शास्त्रीय ज्ञान और आधुनिक तकनीक का अनूठा मेल दिखाई देता है। परियोजना का आरंभ प्राचीन ग्रंथों—सिद्ध-सिद्धांत पद्धति, गोरक्षशतक, हठयोग प्रदीपिका, गोरखबानी तथा नाथ साहित्य की अन्य महत्वपूर्ण कृतियों के गहन दार्शनिक विश्लेषण से होगा। यह विश्लेषण नाथपंथ की वैचारिक संरचना तथा योग-साधना की शास्त्रीय पद्धतियों को स्पष्ट करने में सहायक होगा। इसके बाद शोध-दल चयनित तीर्थस्थलों पर प्रत्यक्ष सर्वेक्षण करेगा, जिसमें स्थल की स्थापत्य कला, शिलालेख, मूर्तिकला, अनुष्ठान, पर्यावरणीय संदर्भ और लोकविश्वासों का विस्तार से अध्ययन किया जाएगा। इस फील्ड कार्य में GPS और GIS आधारित मानचित्रण, फोटो-वीडियोग्राफी, ड्रोन विजुअल रिकॉर्डिंग और साक्षात्कार प्रमुख भूमिका निभाएँगे।
स्थानीय महंतों, नाथ साधकों, कलाकारों, बुजुर्गों और पारंपरिक वाचिक ज्ञान के धारकों से लिए जाने वाले साक्षात्कार इस परियोजना का केंद्रीय तत्व होंगे, क्योंकि इन्हीं के माध्यम से विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं को मिलाकर शोध-दल नाथपंथ का एक डिजिटल आर्काइव निर्मित करेगा जो शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों और आम जन के लिए एक स्थायी दस्तावेज़ के रूप में उपलब्ध रहेगा।
प्रधान अन्वेषक डॉ. अंकित सिंह ने कहा कि नाथपंथ भारतीय सांस्कृतिक चेतना की एक विशाल परंपरा है। इसके तीर्थस्थलों का अध्ययन भारतीय भूगोल, इतिहास और दर्शन को एक नए दृष्टिकोण से समझने का अवसर प्रदान करेगा। यह परियोजना नाथ दर्शन, योग और सामाजिक समरसता के सिद्धांतों को दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में पुनःस्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस परियोजना के सह-प्रधान अन्वेषक दर्शनशास्त्र के डॉ. संजय कुमार तिवारी हैं। इस परियोजना से नाथपंथ की विरासत को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिलेगी।
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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय