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कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

– राष्ट्रपति के रेफरेंस पर 8वें दिन की सुनवाई पूरी, अगली सुनवाई अब 10 सितंबर को

नई दिल्ली, 09 सितंबर (Udaipur Kiran) । उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर मंगलवार काे 8वें दिन की सुनवाई पूरी कर ली। संविधान बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई अब 10 सितंबर को करेगा।

सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार की ओर से कहा गया कि राज्यपाल बस नाम मात्र के प्रमुख होते हैं और वो सिर्फ केंद्र और राज्यों के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं। कर्नाटक सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं चलायी जा सकती, क्योंकि वे कार्यपालिका का कोई कार्य नहीं करते हैं। मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही राज्यपाल की संतुष्टि है। संविधान के तहत राज्य में निर्वाचित सरकार के साथ समानांतर प्रशासन का प्रावधान नहीं है। तब मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत जो अभियोजन चलाने के लिए पूर्व अनुमति ली जाती है, उसमें भी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना पड़ता है। इस पर सुब्रमण्यम ने कहा कि इस मामले में कोर्ट के कई फैसले हैं, जिसमें माना गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं और धारा 197 में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं।

केरल सरकार की ओर से कहा गया कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक की मंजूरी देने से इनकार करते हैं, तो राज्य मंत्रिपरिषद उन्हें उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य कर सकती है। केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि जब सरकार और राज्यपाल के बीच चर्चा के बाद भी कोई सहमति नहीं बनती है और राज्यपाल किसी विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देना चाहते हैं तो मंत्रिपरिषद अनुच्छेद 163 के तहत उन हें तुरंत मंजूरी देने का सलाह दे सकती है।

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से 3 सितंबर को कहा गया था कि राज्यपाल विधेयकों की विधायी क्षमता को नहीं परख सकते। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि आजादी के बाद से शायद ही ऐसा कोई मौका आया हो, जब राष्ट्रपति ने संसद की ओर से पारित किसी विधेयक को जनता की इच्छा के कारण रोका हो। सिब्बल ने कहा कि राज्य विधानमंडल की संप्रभुता भी संसद की संप्रभुता जितनी ही महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश की ओर से वकील आनंद शर्मा ने कहा कि संविधान में राज्यपाल के विवेकाधिकार का कोई प्रावधान नहीं है। राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है लेकिन राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह मानना जरुरी नहीं होता है।

संविधान बेंच ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।

राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत उच्चतम न्यायालय से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर उच्चतम न्यायालय की सलाह लेने का अधिकार है।

(Udaipur Kiran) /संजय

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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी

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