Uttar Pradesh

साहित्य विचारों की टकराहट और समानता का द्वंद्व है: गौहर रजा

सम्मेलन स्थल

बांदा, 19 सितंबर (Udaipur Kiran) । जनवादी लेखक संघ के 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द गांव में हुआ। तीन दिवसीय इस सम्मेलन का उद्घाटन कवि, वैज्ञानिक और फिल्मकार गौहर रज़ा ने किया।

उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता की शुरुआत से ही लेखक और समाज का गहरा रिश्ता रहा है। “साहित्य विचारों की टकराहट की यात्रा है, जिसमें समानता का द्वंद्व भी शामिल है। कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो हमें बार–बार पढ़ना चाहिए। जब हम लेखक हैं तो शब्दों की जिम्मेदारी उठानी होगी, क्योंकि शब्दों की ताकत से सरकारें तक कांप जाती हैं।”

गौहर रज़ा ने उर्दू और हिंदी के लेखकों की तीन श्रेणियां गिनाईं—

जो भ्रमों में जी रहे हैं,

जो प्रगतिशील ख्वाब देखते हैं,

और जो संघर्ष के बीच डटे हैं।

उन्होंने कहा कि दमन के खिलाफ कलम की धार और पैनी करनी होगी। “हमने अपनी बोलियों की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। आज की मुश्किलों को नई पीढ़ी तक लगातार पहुंचाना जरूरी है। जहां तक लोकतंत्र टिका हुआ है, उसे टिकाए रखना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।”

सम्मेलन में विशिष्ट वक्ता के रूप में सामाजिक–राजनीतिक कार्यकर्ता और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने बोलते हुए कहा कि बोलियों का महत्व भाषा की व्यापकता को बढ़ाता है। “विचार व्यक्त करने की आज़ादी हमारे संस्कार और सरोकारों की अभिव्यक्ति है। आज हमें मनुस्मृति की ओर झोंकने की साजिशें हो रही हैं, जिनकी सबसे बड़ी शिकार महिलाएं और दलित हैं। समानता हमारी सबसे कीमती धरोहर है और इसे बचाना होगा।”

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता चंचल चौहान, रेखा अवस्थी और इब्बार रब्बी ने की। स्वागत समिति अध्यक्ष प्रेम सिंह ने देशभर से आए लेखकों का अभिनंदन किया।

जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज सिंह और प्रलेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य फखरुद्दीन ने सम्मेलन को शुभकामनाएं दीं। संचालन जनवादी लेखक संघ के महासचिव संजीव कुमार ने किया।

वैचारिक संवाद और चर्चाएं

अगले सत्रों में कई चर्चित वक्ताओं ने विचार रखे। इनमें लोकप्रिय कवि सम्पत सरल, सामाजिक चिंतक भंवर मेघवंशी और युवा लेखिका नितिशा खलखो शामिल रहे। विचार सत्र का संचालन बजरंग बिहारी तिवारी ने किया।

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(Udaipur Kiran) / अनिल सिंह

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