Uttar Pradesh

श्री वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय में गणेशोत्सव मंगलवार से,विविध धार्मिक अनुष्ठान

गणपति बप्पा

वाराणसी,25 अगस्त (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार (27 अगस्त) से भगवान गणेश की आराधना शुरू होगी। नगर और ग्रामीण अंचल के विभिन्न पूजा पंडालों में कहीं पॉच दिन तो कहीं सप्ताह व्यापी तो कहीं दस दिन तक भगवान गणेश की पूजा अर्चना होगी। नगर के रामघाट स्थित श्री वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय में गणेश चतुर्थी से भगवान गणेश की विधिवत पूजा अर्चना वैदिक मंत्रोंच्चार ,हवन—पूजन के बीच होगी।

विद्यालय के 104वें गणेशोत्सव में भगवान गणेश का पूजन ,गणेशसहस्त्रनाम,हवन,वेदपाठ के बाद वेद और शास्त्र के विद्यार्थियों के बीच विविध प्रतियोगिताए होगी। यह जानकारी उत्सव समिति के अध्यक्ष गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने दी। उन्होंने बताया कि उत्सव में विद्वतपरिषद की बैठक,पुराण प्रवचन,हरिकीर्तन,भजन के बाद भगवान गणेश की शोभायात्रा भी निकलेंगी। उत्सव चार सितम्बर तक चलेगा।

बताते चले सनातन हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश को विशेष रूप से समर्पित माना गया है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का स्थान अत्यंत खास है। पौराणिक मान्यता है कि जगत जननी माता पार्वती ने अपने पुत्र भगवान गणेश को द्वार पर खड़ा किया और स्वयं अंदर स्नान के लिए चली गईं। उसी समय महादेव वहां पधारे, लेकिन गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इससे महादेव क्रोधित हो गए और उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को यह ज्ञात हुआ तो वे अत्यंत व्याकुल हो गईं । माता पार्वती की वेदना और नाराजगी शांत करने के लिए भगवान शिव ने गणेश जी को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा की ओर जाकर पहले प्राणी का सिर लेकर आएं, जो सो रहा हो और जिसकी मां अपनी पीठ उसकी ओर किए हुए हो। ऐसा ही एक हाथी मिला, और उसका सिर लाकर भगवान शिव ने गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार भगवान गणेश जी को पुनर्जीवन प्राप्त हुआ और वे गजानन कहलाए। एक अन्य मान्यता है कि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को ही भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास के कहने पर महाभारत ग्रंथ का लेखन आरंभ किया था। इस पवित्र ग्रंथ को लिखने से पहले गणेश जी ने शर्त रखी थी कि वे लेखन बीच में नहीं रोकेंगे, और वेदव्यास जी को बिना रुके वाचन करना होगा। इसी व्रत के साथ इस महान कार्य की शुरुआत हुई थी। यही कारण है कि इस तिथि को बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी विशेष माना जाता है।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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