Uttrakhand

भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हो रहे विदेशी युवा: डॉ चिन्मय पण्ड्या

डॉ चिन्मय पण्ड्या

हरिद्वार, 12 अगस्त (Udaipur Kiran) । पश्चिमी देशों के युवा अब भारतीय संस्कृति और जीवनशैली की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। योग, ध्यान और आध्यात्मिकता जैसे विषयों में उनकी गहरी रुचि विकसित हो रही है। यह बात देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने अपने अट्ठारह दिवसीय विदेश प्रवास से लौट कर कही।

हरिद्वार लौटने के बाद एक संगोष्ठी में चर्चा करते हुए डॉ. पण्ड्या ने बताया कि यूरोप, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड और लातविया जैसे देशों में भारतीय संस्कृति को लेकर एक नई जागरूकता और उत्सुकता देखी जा रही है। विशेषकर युवाओं में भारतीय मूल्यों और जीवन दर्शन के प्रति गहरा आकर्षण उत्पन्न हो रहा है।

उन्होंने बताया कि इन देशों में हुए विभिन्न संवाद कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और यज्ञीय आयोजनों के दौरान देखा कि युवा वर्ग केवल योग और ध्यान को शारीरिक व्यायाम के रूप में नहीं, बल्कि उसे एक समग्र जीवनशैली के रूप में अपना रहा है। वे अब भारतीय जीवन दृष्टिकोण जहाँ संतुलित आहार, संयमित व्यवहार, और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है को अपनाना चाहते हैं।

प्रतिकुलपति ने बताया कि यूरोप के युवाओं में भौतिकता से उत्पन्न तनाव और अकेलेपन का गहरा असर दिखता है, जिससे उबरने के लिए वे भारतीय संस्कृति की ओर रुख कर रहे हैं।

डॉ. पण्ड्या ने बताया कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विश्वविद्यालय भारत सहित अनेक देशों में सेमिनार, योग शिविर सहित विभिन्न माध्यमों से भारतीय मूल्यों को आगे बढ़ा रहा है। इसके माध्यम से विदेशी युवाओं को भारत की प्राचीन परंपराओं की जानकारी दी जा रही है और उन्हें आत्मविकास का मार्ग भी दिखाया जा रहा है।

डॉ चिन्मय पण्ड्या ने बताया कि 2026 भगवती देवी शर्मा की जन्मशताब्दी वर्ष है। इस निमित्त भारत सहित विभिन्न देशों ज्योति कलश यात्रा निकाली जा रही है, जिसमें शिकागो, कनाडा, विनिपेग आदि स्थानों में युवाओं की विशेष भागीदारी रही।

डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति का वैश्वीकरण कोई नया विषय नहीं है, लेकिन अब यह एक व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण आंदोलन का रूप ले रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आने वाले वर्षों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता विश्व में और अधिक प्रभावशाली रूप से अपनी छाप छोड़ेगी और इसमें भारत की युवा पीढ़ी की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।

(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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