
प्रयागराज, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सूचीबद्ध मामलों में अधिवक्ताओं का उपस्थित न होना व्यावसायिक कदाचार तथा बेंच हंटिंग या फोरम शॉपिंग के समान है।
न्यायालय एक जमानत आवेदन पर विचार कर रहा था, जिसमें आवेदक की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं था। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की खंडपीठ ने कहा, “इस न्यायालय ने पाया है कि सूचीबद्ध अधिकांश मामलों में वकील उपस्थित नहीं हो रहे हैं, वह भी कई तारीखों पर। आवेदक के वकील का उपस्थित न होना पेशेवर कदाचार के समान है। यह बेंच हंटिंग या फोरम शॉपिंग के समान है।“
न्यायालय ने शुरू में ही यह टिप्पणी की कि इस तरह वकील का गैरहाजिर होना कोई पहली या अकेली घटना नहीं है। बल्कि ऐसा पहले भी हो चुका है। सूचना देने वाले के वकील ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी का बयान पहले ही दर्ज किया जा चुका है और मुकदमा अपने अंतिम चरण में है। न्यायालय ने ईश्वरलाल माली राठौड़ बनाम गोपाल केस में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि अदालतें नियमित तरीके से और यंत्रवत केसों को नहीं टालेगी और न्याय देने में देरी के लिए पक्षकार नहीं होंगी।
यह देखते हुए कि जमानत आवेदन के लम्बित रहने मात्र से आवेदक के पक्ष में कोई अधिकार अर्जित नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि इसे लम्बित रहने की आड़ में वर्षों तक उलझाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने कहा, “आवेदक को बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के न्यायिक कार्यवाही से बार-बार अनुपस्थित रहकर न्याय की धारा को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गैरहाजिर रहने का कोई कारण न बताना कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है, भले ही आदेश उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हो।“
इस प्रकार न्यायालय ने पूजा के जमानत आवेदन पर विचार करने से इंकार कर दिया।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
