

जयपुर, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । जोश से भरी लोक प्रस्तुतियां, उत्साहित कलाप्रेमी और लोक संस्कृति के सौंदर्य से सराबोर माहौल’, जवाहर कला केन्द्र में रविवार को कुछ ऐसा ही नजारा दिखा। मौका रहा 28वें लोकरंग महोत्सव के छठे दिन का। मध्यवर्ती में लोक नृत्य समारोह के अंतर्गत विभिन्न राज्यों के कलाकारों ने 14 विधाओं की प्रस्तुति दी। शिल्पग्राम में चल रहे राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में बड़ी संख्या में आगंतुक दस्तकारों के उत्पाद खरीदते दिखाई दिए। यहां सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और खान—पान का आनंद लेते हुए लोगों ने खरीदारी की।
मध्यवर्ती में गाजी खान बरना व उनके साथियों की मांगणियार गायन प्रस्तुति के साथ सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत हुई। ‘वारी जाऊं रे बलिहारी जाउं’ रे गीत के साथ उन्होंने गुरु चरणों में वंदन किया। ‘दमादम मस्त कलंदर’ और ‘बाईसा लाडका घणा’ गीत गाकर उन्होंने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद राजस्थान का चरी नृत्य प्रस्तुत किया गया, गुर्जर समुदाय की महिलाओं द्वारा यह मांगलिक नृत्य किया जाता है जो युद्ध विजय पर योद्धाओं के स्वागत में किया जाता था। महाराष्ट्र से आए कलाकारों की सौंगी मुखवटे नृत्य की प्रस्तुति ने सभी को रोमांचित कर दिया। बड़े—बड़े मुखौटे लगाकर कलाकारों ने पौराणिक कथाओं को मंच पर साकार किया। बांसवाड़ा जिले के आदिवासी कलाकारों ने होली के पावन अवसर पर होने वाला होली गैर नृत्य प्रस्तुत किया।
इसके बाद जैसलमेर से आए कलाकार राणा राम ने मंच पर पारंपरिक लोक वाद्य नड़ वादन की मधुर प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने नड़ वादन से अनोखा संगीतमय वातावरण बनाया। उत्तर प्रदेश की पूर्वी नृत्य की प्रस्तुति ने भावनात्मक गीतों और लोक रचनाओं से शाम को पूर्वांचल के रंगों से सराबोर कर दिया। वहीं राजस्थान के गैर घूमरा नृत्य में वागड़ क्षेत्र के कलाकारों ने प्रस्तुति दी। इसमें पुरुषों ने हाथ में तलवार और महिलाओं ने हाथ में रुमाल लेकर गोल घेरा बनाकर नृत्य किया। इस प्रस्तुति में आकर्षण का केंद्र हैं उनके द्वारा पहने जाने वाले पारंपरिक आभूषण।
ओडिशा के कलाकारों ने गोटीपुआ नृत्य में कला प्रेमियों को जगन्नाथ महाप्रभु की भक्ति के रंग में रंग दिया। शास्त्रीय अंगों को समाहित करने वाले इस नृत्य में कलाकारों ने ऐसी मुद्राएं साकार की जिन्हें देखकर सभी दंग रह गए। भगवान जगन्नाथ के समक्ष पुरुष स्त्री वेश में यह नृत्य करते हैं जो परंपरा यहां मंच पर साकार हुई। गुजरात के मणियारो रास में कलाकारों का जोश देखते ही बना। इसमें डांडिया के साथ बेहतर सामंजस्य के साथ कलाकारों ने रोमांचित करने वाली प्रस्तुति दी। राजस्थान की कलाकार ममता देवी व समूह के कलाकारों ने ने मंच पर चकरी नृत्य की प्रस्तुति दी। मध्यप्रदेश के मटकी नृत्य की में कलाकारों के फूल बूटों से युक्त परिधानों ने प्रस्तुति को रंगों से भर किया। मालवी भाषा में गीत गाए गए और सिर पर रखकर संतुलन का परिचय दिया गया। महाराष्ट्र से आए कलाकारों ने लावणी की ऊर्जावान प्रस्तुति दी। लावणी नृत्य महाराष्ट्र तमाशा लोक नाट्य में उपयोग किया जाता था जो अब स्वतंत्र कला का रूप ले चुका है।
बालकों की गैर में बालोतरा से आए बच्चों ने नन्हे कदमों और मासूमियत भरे अभिनय से दर्शकों का हृदय जीत लिया। यह लुप्त होता लोक नृत्य नई पीढ़ी द्वारा प्रस्तुत किया गया ताकि राजस्थान की लोक संस्कृति देश के कोने-कोने तक पहुंचे। यह ढोल, थाली और घुंघुरुओं की झनकार पर जोशीले अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया।
छठे दिन की शाम की आखिरी प्रस्तुति गुजरात में रह रहे अफ्रीकी आदिवासी समूह द्वारा सिद्दी धमाल रही। अनोखी वेशभूषा में तैयार भरूच के रतनपुर से आए कलाकारों ने सिद्धि धमाल की प्रस्तुति दी। यह रोमांचित करने वाली प्रस्तुति रही। बताया गया कि 700 साल पहले हजरत बाबा गोर पूर्वी अफ्रीका से अपने अनुयायियों संग भारत आए थे। रतनपुर सिद्धि समुदाय का केंद्र है। हर वर्ष बाबा गोर के उर्स पर रतनपुर में मेला भी लगता है। सिद्धि नृत्य मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। जेकेके में अफ्रीकी भाषा के गीत पर हुई प्रस्तुति में बाबा गोर की वंदना की गयी।
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(Udaipur Kiran)
