West Bengal

बंगाल के सरकारी स्कूलों में 35 हजार पद के लिए पांच लाख आवेदन

शिक्षक

कोलकाता, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा नौ से 12 तक के लिए सहायक शिक्षकों के 35 हजार 726 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) को अब तक पांच लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हो चुके हैं। आयोग के अध्यक्ष सिद्धार्थ मजूमदार ने बताया कि डब्ल्यूबीएसएससी ने 30 मई को इन पदों के लिए अधिसूचना जारी की थी, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में की गई थी। 16 जून से ऑनलाइन आवेदन पोर्टल शुरू किया गया, जिसकी अंतिम तिथि पहले 14 जुलाई तय की गई थी, लेकिन बाद में इसे 21 जुलाई तक बढ़ा दिया गया। 17 जुलाई तक पांच लाख आवेदन आ चुके हैं और अभी इसके और बढ़ने की संभावना है।

आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2016 की नियुक्तियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बाद इस नई प्रक्रिया की शुरुआत की गई है। कोर्ट ने अप्रैल में 2016 की राज्य स्तरीय चयन परीक्षा (एसएलएसटी) से की गई 25 हजार 753 शिक्षकों की नियुक्तियों के साथ-साथ ग्रुप ‘सी’ और ग्रुप ‘डी’ कर्मियों की नियुक्तियां भी निरस्त कर दी थीं।

कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को 31 मई से पहले नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का शपथपत्र दाखिल करना था, जिसे देखते हुए आयोग ने यह नई प्रक्रिया शुरू की। 2016 की भर्ती में तीन लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने 17 हजार 206 में से 15 हजार 403 शिक्षकों को ‘विशेष रूप से अयोग्य नहीं पाए जाने’ के आधार पर दिसंबर तक वेतन प्राप्त करने की अनुमति दी है, जबकि शेष शिक्षकों को स्कूल लौटने से रोक दिया गया है।

आयोग ने पहले स्पष्ट किया था कि तीन और 17 अप्रैल को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विरुद्ध राज्य सरकार और आयोग ने पुनर्विचार याचिका दायर की है, और पूरी प्रक्रिया न्यायालय के अंतिम निर्णय और दिशा-निर्देशों के अधीन होगी।

इस बीच, ‘डिजर्विंग टीचर्स राइट्स फोरम’ के पदाधिकारी चिन्मय मंडल ने नए आवेदन प्रक्रिया पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम आवेदन संख्या पर कुछ नहीं कहना चाहते। लेकिन जो लोग 2016 की परीक्षा पास कर चुके हैं, वे अब अपने पूर्व छात्रों के साथ परीक्षा में बैठेंगे, जो स्नातक और परास्नातक कर चुके हैं। यह स्थिति बेहद असहज है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आयोग और शिक्षा विभाग को इतनी जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए थी, बल्कि ‘अयोग्य नहीं पाए गए शिक्षकों’ के पक्ष में मजबूत कानूनी दलीलें तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करनी चाहिए थीं।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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