
भागलपुर, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । सामाजिक संस्था परिधि की ओर से रविवार को कला केंद्र भागलपुर में “आधुनिक मत्स्य पालन कार्यशाला” का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में गंगा तटवर्ती क्षेत्रों के महिला एवं युवा मछुआरों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए परिधि के निदेशक और वरीय समाजकर्मी उदय ने कहा कि नदियों में मछलियों की संख्या तेजी से घट रही है। उन्होंने कहा कि फ्री फिशिंग अब बेमानी हो गई है। नदियों पर निर्भर परंपरागत मछुआरों की रोज़ी-रोटी पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
उदय ने सरकार की मत्स्य नीति की आलोचना करते हुए कहा कि मत्स्य विभाग की योजनाएं अभी जमीन पर खोदे गए तालाबों तक सीमित हैं, जबकि नदियों से जुड़े मछुआरों को तकनीकी प्रशिक्षण और स्थायी विकल्प की आवश्यकता है। संचलन करते हुए राजीव कुमार सिंह ने बताया कि अब मछुआरों को पारंपरिक तरीकों से इतर केज कल्चर, पेन कल्चर और बायोफ्लक कल्चर जैसी आधुनिक तकनीकों की ओर रुख करना होगा।
यह तकनीकें सीमित संसाधन में अधिक उत्पादन और कम लागत का अवसर प्रदान करती हैं। कार्यशाला में तकनीकी प्रशिक्षक सुश्री अंजना प्रसाद और नीरज कुमार वर्मा ने बताया कि बायोफ्लक तकनीक इज़राइल से विकसित एक अभिनव पद्धति है, जिसमें सीमित भूमि पर कृत्रिम टैंक के माध्यम से मत्स्य पालन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह तकनीक घर की छतों, पिछवाड़े की जमीन या नदी किनारे के खाली भूभाग पर भी शुरू की जा सकती है।
इसमें पानी को बार-बार बदलने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि जैविक तत्व (फ्लक) अमोनिया को सोख लेते हैं और उसी में मछलियों को पोषण मिलता है। प्रशिक्षकों ने पीपीटी के माध्यम से दिखाया कि कैसे गुड़, गेहूं का आटा, वायुरोधक पाइप सिस्टम और बैक्टीरियल संतुलन बनाए रखकर बायोफ्लक प्रणाली को सरलता से घर-आधारित उद्यम में बदला जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि पारंपरिक तालाबों की तुलना में इस तकनीक से 5 से 8 गुना अधिक उत्पादन संभव है और पर्यावरण पर इसका प्रभाव भी कम पड़ता है। प्रशिक्षकों ने ग्रामीण महिलाओं के लिए इसे आजीविका के नए मॉडल के रूप में अपनाने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि चार मीटर व्यास के 15000 लीटर के बायोफ्लॉक फिश टैंक में प्रति छमाही 3 क्विंटल से अधिक मछली उत्पादन करते हुए न्यूनतम 45000 रुपए का मुनाफा कमाया जा सकता है।
बायोफ्लॉक तकनीक से कैटफिश कैटेगरी के मछली के अलावा तेलापिया, गरय, कबय, सिंघी आदि श्रेणी की मछलियां आसानी से उत्पादित की जाती है। कार्यशाला में कहलगांव के कागजी टोला और नवगछिया के मक्खातकिया इलाकों से आए लगभग 50 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रतिभागियों में महिला और युवा मछुआरों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। प्रतिभागी सुश्री आद्या आनंद, योगेंद्र सहनी, रोहित सिंह, नरेश सिंह, रामपूजन, स्मिता कुमारी, रेखा मंडल, गौतम मल्लाह और अभिषेक कुमार ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि ऐसी तकनीकी कार्यशालाओं से हमें आत्मनिर्भर बनने की नई दिशा मिलती है। महिला प्रतिभागियों ने बताया कि बायोफ्लक तकनीक को घर के छोटे हिस्से में अपनाया जा सकता है, जिससे घरेलू आय में सीधा लाभ होगा। कार्यक्रम का संचालन संयोजक राजीव कुमार सिंह ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन मनोज कुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यशाला में सहयोग अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन का रहा।
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(Udaipur Kiran) / बिजय शंकर
