Chhattisgarh

धान की बालियों में लगी बीमारी, किसान चिंतित

धान की बालियों में लगी फफूंदी बीमारी।

धमतरी, 9 नवंबर (Udaipur Kiran) । अंचल में तैयार खरीफ धान फसल की कटाई-मिंजाई द्रुत गति से जारी है। कई किसानों की फसल अभी कटाई के लिए तैयार हो रही है। धान कटाई के समय फसल में लगी बीमारी से कई किसान चिंतित हैं। धान फसल में पेनिकल माईट फफूंदी बीमारी लग गई है। इससे फसल उत्पादन में नुकसान की आशंका किसान जता रहे हैं।

जिले में धान की फसल तेजी के साथ तैयार हो रही फसल में कीट व्याधियां होने से किसान परेशान हैं। कई जगह कीटनाशकों का भी असर नहीं हो रहा। धमतरी ब्लाक, कुरुद ब्लाक व मगरलोड ब्लाक में धान का उत्पादन आशा के अनुरूप दिखाई दे तो दे रहा है, लेकिन हाल के दौरान में कीट प्रकोप से उत्पादन घटने की आशंका है। अंचल में ज्यादातर किसानों ने धान की तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति आई आर 64, 1001 , सांभा की बुआई की है। अधिकांश खेतों में इन्हीं किस्म के धान की रोपाई की हुई है। सैकड़ों खेतों में धान के पौधे लहलहा रहे हैं। गबोद अवस्था में मकड़ी फसल को अंदर से डंक मारकर बदरा कर दिया, इसका सीधा असर धान के उत्पादन पर पड़ेगा। किसानों का कहना है कि उनके धान फसल पर इस साल लाल मकड़ी ने हमला कर कई धान के पौधों को बदरा कर दिया है, इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। कई प्रकार के कीटनाशक छिड़काव के बाद भी राहत नहीं मिली और धान बदरा हो गया। बीमारी कब हुआ और कहां से आया, यह पता नहीं चल पाया। धमतरी शहर से लगे हुए ग्राम भटगांव के कई खेत में यह बीमारी है। इससे चिंतित किसान संभावित नुकसान का आंकलन कर रहे हैं।

देमार डाही, छाती, सेमरा , सेनचुवा, बिजनापुरी , बोड़रा, कसही, हंकारा , अंगारा , खम्हरिया, जुनवानी, डोमा, गुजरा ,बिरेतरा , धौराभाठा , रावनगुडा , लिमतरा , पुरी , गोपालपुरी, काशिपुरी, सरसोंपुरी , बगदेही, भेंडरवानी , देवरी, सिहाद, चोरभटठी, भुसरेंगा , कन्हारपुरी , बगौद, कुर्रा , कोसमर्रा, भखारा सहित कई गांव के खेत में यह बीमारी दिखाई दे रही है। जिला प्रशासन ने अनावश्यक दवा छिड़काव न करने के साथ ही साथ कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेने कहा है। जानकारी के अनुसार बीजोत्पाद वाले रिसर्च हाईबि्रड किस्म के धान में यह बीमारी सबसे अधिक है, जैसे स्वर्णा, महामाया, शांभा, एमटीयू, 1001 जैसे अनेक धान के किस्म में देखा जा रहा है। आईआर-64 में यह कम होता है। इस बीमारी से बचने के लिए गबोद अवस्था शुरू होने से पहले खेतों में बीमारी के बिना लक्षण दिखे ही मकड़ीनाशक का छिड़काव करना चाहिए।

विशेषज्ञों के अनुसार आमतौर पर यह बीमारी सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देता। सूक्ष्मदर्शी या मैग्नीफाई ग्लास से देखा जा सकता है। पौधों में दो प्रकार के मकड़ी पाया जाता है, एक मकड़ी लाभदायक है और लाल मकड़ी नुकसानदायक है। इस बीमारी के होने पर प्रति एकड़ आठ से 10 क्विंटल धान का उत्पादन कम हो सकता है।

धान फसल का सतत करें निरीक्षण

कृषि विज्ञान केंद्र सांकरा-धमतरी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाॅ शक्ति वर्मा ने बताया कि प्रदेश के धमतरी, जांजगीर व कवर्धा क्षेत्र में यह बीमारी पिछले छह सालों से है, लेकिन कम था। अब बीमारी बढ़ने लगा है। लाल मकड़ी को केमिकल माइट कहते हैं। जब धान के पौधा गबोद अवस्था में होता है, तो मकड़ी पौधों में डंक मारकर पौधों के विकसित हो रहे दानों और बालियों का रस चूसकर बदरा कर देता है। ऐसे में पौधों से बदरंग बदरा धान की बालियां निकलती है, जो खराब रहता है। बीमारी होने पर कोई भी कीटनाशक व दवाईयां काम नहीं करते, ऐसे में कोई उपचार नहीं बचता।

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा