
बीएचयू विधि संकाय में मौलिक स्वतंत्रताएं और आपातकालीन कानून पर गोलमेज चर्चा
वाराणसी, 26 जून (Udaipur Kiran) । आपातकाल की 50वीं बरसी के अवसर पर गुरुवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के विधि संकाय में नागरिकों की मौलिक स्वतंत्रताओं का महत्व और भारत में आपातकालीन कानून विषय पर एक गोलमेज चर्चा आयोजित की गई। इस चर्चा का उद्देश्य 25 जून 1975 को लागू किए गए आपातकाल की ऐतिहासिक, संवैधानिक एवं सामाजिक व्याख्या करना था।
चर्चा के संयोजक प्रो. शैलेन्द्र कुमार गुप्ता ने 1975 में घोषित आपातकाल की घटनाओं को विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि आपातकाल की ऐतिहासिक घटना को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीकों से समझा जा सकता है। यह सही है कि आपातकाल के दौरान नागरिकों की मौलिक स्वतंत्रता का घोर दमन किया गया था।
आपातकाल के दौरान हुए संवैधानिक और विधायी परिवर्तनों—जैसे 42वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्तव्यों की शुरुआत—का दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। इस आपातकालीन युग के कारण नए संवैधानिक न्यायशास्त्र और सिद्धांत अस्तित्व में आए। ये सिद्धांत थे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा का सिद्धांत, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता । इस आपातकालीन युग के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक सक्रियता शुरू की और ऐतिहासिक मेनका गांधी निर्णय के माध्यम से मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार किया। मुख्य अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि प्रोफेसर एवं बीएचयू के पूर्व छात्र प्रो. शैवाल सत्यार्थी ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों, विशेषकर एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला में न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना की असहमति पर आधारित राय का महत्व समझाया।
अध्यक्षीय भाषण में विधि संकाय के विभागाध्यक्ष एवं डीन प्रो. सी. पी. उपाध्याय ने कहा कि अब संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत केवल आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल लागू नहीं किया जा सकता, जैसा कि 1975 में हुआ था। उन्होंने मौलिक अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका की सराहना की । प्रोफेसर रजनीश कुमार पटेल ने बताया कि बेरोजगारी की समस्या, असहिष्णुता की संस्कृति और असहमति को दबाने की प्रवृत्ति जैसी समकालीन चुनौतियों पर भी चर्चा होनी चाहिए। डॉ. राजू माझी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज भी असहमति के अधिकार सहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है।
डॉ. एम. के. मालवीय ने संवैधानिक मूल्यों के महत्व और भारत में मौलिक अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका के योगदान पर प्रकाश डाला। डॉ. प्रदीप कुमार ने आपातकाल के बाद के दौर में मानवाधिकार कानून के विकास की ओर इशारा किया। अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. अंजलि अग्रवाल ने आपातकाल के दौर के आर्थिक परिप्रेक्ष्य को समझाया, जिसमें रोजगार के अधिकार को बहुत महत्व दिया गया । इंडस यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद के सहायक प्रोफेसर डॉ. शमोरॉय सरकार ने आपातकाल के तुरंत बाद तय किए गए ऐतिहासिक मेनका गांधी मामले में न्यायिक योगदान के महत्व पर प्रकाश डाला। चर्चा में प्रो. अजेंद्र श्रीवास्तव , शोध छात्र अतुल कुमार पांडेय, अभिषेक शर्मा और क्रिस्टी अन्ना जॉर्ज ने भी 1975 के आपातकाल के विभिन्न आयामों पर अपनी बात रखी। शोध छात्र शिवांग त्रिपाठी, बलराम यादव,पंकज पांडेय, राजीव झा और तरुण कुमार सिंह समेत विधि संकाय के कई गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने भी इसमें भागीदारी की। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. एस.के. गुप्ता ने किया। पीएचडी स्कॉलर अभिषेक शर्मा ने गोलमेज चर्चा के प्रतिवेदक की भूमिका निभाई।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
