West Bengal

हावड़ा के माकड़दह में दुर्गापूजा ने पूरे किए 100 साल, एक ही परिवार में होती हैं तीन-तीन पूजा

दुर्गा पूजा

हावड़ा, 20 सितंबर (Udaipur Kiran) । इस वर्ष हावड़ा के माकड़दह की दुर्गापूजा शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रही है। यहां की पूजा बिल्कुल अलग है, क्योंकि माकड़दह के एक ही बंद्योपाध्याय परिवार में तीन-तीन दुर्गापूजा होती हैं। एक बड़े घर में, दूसरी मनसातला में और तीसरी नए घर में। इन तीनों पूजा को केंद्र कर पूरा गांव उत्सव में डूब जाता है।

माकड़दह में बंद्योपाध्याय परिवार का आगमन बहुत पहले हुआ था, तब जगदीश बाचस्पति यहां आकर बस गए थे। परिवार का मूल स्थान हुगली जिले का बागांड़ा गांव था। वे मूलतः कन्नौज से आए कूलिन ब्राह्मणों में से थे और बाचस्पति की उपाधि पाई थी। 1742 में बर्गी आक्रमण के समय अपने गांव से विस्थापित होकर वे माकड़दह के पूर्व नवपाड़ा में आ बसे। उस कठिन समय में भी वे अपने आराध्य अनंतदेव शालीग्राम शिला को साथ लाना नहीं भूले। यहीं से परिवार की दुर्गापूजा की शुरुआत हुई, जिसे बाद में बड़े घर की पूजा के नाम से पहचान मिली। उनके वंशजों ने आगे चलकर परिवार के अन्य घरों में भी पूजा प्रारंभ की।

आज इन तीनों घरों में एक ही विधि-विधान से पूजा होती है। प्रतिपद से नवमी तक चंडीपाठ किया जाता है। पहले सप्तमी से नवमी और संधिपूजा पर बकरे की बलि दी जाती थी, लेकिन यह प्रथा अब समाप्त हो चुकी है। पूजा के दौरान प्रतिदिन देवी को अन्नभोग चढ़ाया जाता है, जिसमें सफेद चावल, खिचड़ी, पायस (खीर) और पुलाव शामिल होता है। शालीग्राम शिला आज भी तीनों घरों में पूजित होती है और कुलदेवता की पूजा भी इसी प्रकार की जाती है।

पहले दशमी के दिन तीनों घरों की प्रतिमाओं का विसर्जन सरस्वती नदी में होता था, लेकिन अब यह पास के तालाबों में किया जाता है। इसके बाद प्राचीन परंपरा के अनुसार एकादशी की शाम पूरे गांव के दुर्गापूजा आयोजक देवी माकड़चंडी मंदिर में आकर सामूहिक पूजा अर्चना करते हैं।

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(Udaipur Kiran) / धनंजय पाण्डेय

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