
जोधपुर, 11 अगस्त (Udaipur Kiran) । मारवाड़ के पहनावे और संस्कृति में साफे का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मारवाड़ी प्रतिष्ठा और सामाजिक समझौतो का माध्यम भी रहा है। वर्तमान में साफे की संस्कृति ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोधपुर और राजस्थान का नाम किया है। द हेरिटेज साफा हाउस की ओर से आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी राजस्थानी साफा: बदलते परिवेश में बदलते रूप में बुद्धिजीवियों और व्यवसायियों को संबोधित करते हुए यह उद्गार जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गजे सिंह राजपुरोहित ने प्रकट किए।
उन्होंने साफे के विभिन्न पेच, विविध अवसरों पर पहने जाने वाले रंग और सामाजिक मर्यादा के रूप में उपादेयता पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में विश्व रिकॉर्ड धारी चनण सिंह इंदा ने साफे की सामाजिक मर्यादा, व्यक्ति की प्रतिष्ठा के साथ उसका जुड़ाव, और विविध रूप विषय पर कार्यपत्रक प्रस्तुत किया।
हनुमान सिंह खांगटा ने उपस्थित शोधार्थियों, कलाकारों और व्यवसाय से जुड़े लोगों का आह्वान किया कि साफे को केवल व्यवसाय तक सीमित नहीं रखकर संस्कृति के अनुरक्षण का माध्यम बनाया जाए। शिक्षाविद और मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. बीएल जाखड़ ने साफे की कला को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए कलाकारों और व्यवसायियों को राजकीय संरक्षण दिए जाने, इस कला को प्रोत्साहित करने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक मेलो में राजस्थान की सशक्त उपस्थिति की आवश्यकता अनुभूत की, वहीं शिक्षाविद व राजस्थानी कवि मांगीलाल प्रजापत ने साफे की महिमा पर अपनी काव्य रचना प्रस्तुत की।
गोपाल सिंह भलासरिया ने परंपरागत रूप से साफे को बांधे जाने और इस कला को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाने वाले ऐतिहासिक चरित्रों के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन सूत्रधार भरत सिंह राजपुरोहित पुनाडिया ने किया। सूबेदार डूंगर सिंह ने आभार प्रकट किया वही मोहित गहलोत ने सार प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
(Udaipur Kiran) / सतीश
