
मंडी, 20 अगस्त (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की गद्दी, किन्नौरा और जौनसारी जनजातियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले 1,600 से अधिक औषधीय और खाद्य पौधों का ने केवल किया जा रहा है, बल्कि दस्तावेजीकरण किया गया। हिमालयी औषधीय पौधों से विकसित पौधों पर आधारित स्वास्थ्य उत्पादों और पर्यावरण-अनुकूल निष्कर्षण विधियों के लिए चार पेटेंट दाखिल किए हैं। ये पेटेंट डॉ. राधा के ऐतिहासिक एथ्नोबॉटैनिकल अध्ययन एथ्नोवेटरनरी मेडिसिन्स यूज्ड बाय द ट्राइबल माइग्रेटरी शेफर्ड्स ऑफ नॉर्थवेस्टर्न हिमालय पर आधारित हैं।
यह शोध एडवांस्ड नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से, बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया देहरादून, डॉ. वाई.एस. परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री नौन, शूलिनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, ईस्ट कैरोलाइना यूनिवर्सिटी तथा यूनिवर्सिटी ऑफ वीगो, स्पेन के साथ मिलकर किया गया। अध्ययन ने पिक्रोराइज़ा कुर्रोआ, जेंटियाना कुर्रो और लिलियम पॉलीफाइलम जैसी दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर भी बल दिया।
डा. राधा शूलिनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज में सहायक प्रोफेसर एवं हर्बेरियम और ड्रग म्यूज़ियम की प्रभारी हैं ने वर्ष 2025 में हिमालयी औषधीय पौधों से विकसित पौधों पर आधारित स्वास्थ्य उत्पादों और पर्यावरण-अनुकूल निष्कर्षण विधियों के लिए चार पेटेंट दाखिल किए हैं। यह पहली बार है जब क्षेत्रीय जनजातीय उपचारों को वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर आधुनिक, एडिटिव-रहित फंक्शनल फूड्स और प्राकृतिक एंटीमाइक्रोबियल समाधानों में परिवर्तित किया गया है। दाखिल पेटेंट्स में एक पोषक तत्वों से भरपूर जैम शामिल है, जो बॉम्बैक्स सीबा सेमल के फूलों और सेब के पल्प से बनाया गया है। यह जैम आहार फाइबर, फिनॉल्स और फ्लेवोनॉयड्स से समृद्ध है तथा फूलों के एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों का लाभ प्रदान करता है। इसमें किसी भी प्रकार के कृत्रिम प्रिज़र्वेटिव्स या रंगों का उपयोग नहीं किया गया है। एक अन्य पेटेंट आवेदन बॉम्बैक्स सीबा सेमल के फूलों से बने रेडी-टू-सर्व ड्रिंक से संबंधित है, जो इस पौधे के पारंपरिक शीतलन और पुनर्स्थापनात्मक गुणों को आधुनिक खाद्य विज्ञान से जोड़ते हुए बायोएक्टिव यौगिकों को सुविधाजनक रूप में प्रस्तुत करता है।
दो पेटेंट नवीन औषधीय पौधों के निष्कर्षण तरीकों से जुड़े हैं। इनमें से एक प्रिन्सेपिया यूटिलिस की पत्तियों से संबंधित है, जिससे ऐसे निष्कर्ष तैयार किए गए हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया, यहां तक कि दवा-प्रतिरोधी जीवाणुओं से भी लड़ने में सक्षम हैं। यह पहली बार है जब इस हिमालयी पौधे के ऐसे प्रभाव सामने आए हैं। दूसरा पेटेंट गिलोय (टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया) की पत्तियों के लिए है, जिसमें कई एंटीमाइक्रोबियल यौगिकों को संरक्षित करते हुए पारंपरिक एंटीबायोटिक्स के लिए एक प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रस्तुत किया गया है।
डॉ. राधा ने कहा कि यह शोध उन पारंपरिक ज्ञानों को वैज्ञानिक प्रमाण देने की दिशा में एक कदम है, जो पीढ़ियों से मौखिक रूप से हस्तांतरित होते आए हैं। फील्ड डाक्यूमेंटेशन और प्रयोगशाला विश्लेषण को मिलाकर हमने पौधों पर आधारित स्वास्थ्य उत्पाद और पर्यावरण-अनुकूल निष्कर्षण विधियां विकसित की हैं, जो जनजातीय उपचारों को मान्य फंक्शनल फूड्स और प्राकृतिक एंटीमाइक्रोबियल समाधानों में बदलते हैं, जिससे आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं और स्थानीय हिमालयी समुदायों दोनों को लाभ होगा। ये पेटेंट आवेदन एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस जैसी गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करते हैं और साथ ही स्वदेशी ज्ञान की सुरक्षा तथा हिमालयी समुदायों के लिए औषधीय पौधों की खेती और संरक्षण के माध्यम से आजीविका के अवसर भी उत्पन्न करते हैं। सदियों पुराने हिमालयी उपचारों को वैज्ञानिक रूप से मान्य और वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक स्वास्थ्य समाधानों में परिवर्तित करके डॉ. राधा का कार्य परंपरा और नवाचार के बीच सेतु का निर्माण करता है और यह दर्शाता है कि कैसे स्वदेशी ज्ञान भविष्य की चिकित्सा को आकार दे सकता है।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा
