Maharashtra

डॉ प्रशांत सिनकर को राष्ट्रीय उत्कृष्टता सम्मान से नवाजा गया

Dr Prashant awarded national excellence award

मुंबई,9 नवंबर ( हि.स.) । पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और सामाजिक उत्तरदायित्व के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ठाणे के पर्यावरण विद्वान एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रशांत रवींद्र सिनकर को टीजीपी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर के राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है।

डॉ. सिनकर ने ढाई दशकों से भी अधिक समय से पर्यावरण पत्रकारिता के माध्यम से जल संरक्षण, वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और सतत विकास जैसे मुद्दों पर निरंतर लेखन और जागरूकता पैदा की है। उनके प्रभावी लेखन ने नागरिकों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता पैदा की है और जनभागीदारी के माध्यम से राज्य भर में जल संरक्षण, वृक्ष संरक्षण और अपशिष्ट पुनर्चक्रण जैसी पहल आकार ले रही हैं।

इस राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार 2025 ने ठाणे के तमाम निवासियों का गौरव बढ़ाया तो है ही अपितु महाराष्ट्र में पर्यावरण पत्रकारिता को एक नई दिशा और पहचान मिली है। इससे पहले भी डॉ. सिनकर को महाराष्ट्र सरकार सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। पर्यावरण संरक्षण के लिए निरंतर कार्यरत डॉ. सिनकर को इस सफलता के लिए ठाणे ब मुंबई से पर्यावरणविदों से बधाइयाँ मिल रही हैं।उल्लेखनीय है कि पर्यावरणविद प्रशांत सिनकर ने समय समय पर ठाणे मुंबई में बढ़ते प्रदूषण के बारे में राज्य के मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री को पत्र लिख कर अवगत कराया है।विशेषकर ठाणे महानगर पालिका क्षेत्र में गणेशोत्सव के दौरान बनाए गए कृत्रिम तालाबों से फैल रहे गंदगी ,कीचड़ से और अधिक पनप रहे प्रदूषण के बारे में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को खत लिख कर चिंता व्यक्त की थी।पर्यावरणविद प्रशांत सिनकर ने चाहे दीपावली हो अथवा अन्य कोई त्योहार हरे भरे पेड़ों के अस्तित्व को बचाने के लिए उन पर बिजली के तारों से लाइट लगाने का हमेशा ही घोर विरोध किया है।इसके कारण कभी करेंट लगने से पेड़ झुलस जाते है और कभी शुद्ध वायु अथवा प्रकाश संश्लेषण नहीं होने से उनकी सांसे थम जाती है।इसी तरह बरसात में बहकर बर्बाद हो रहे करोड़ों लीटर बरसाती पानी की बरबादी रोकने के लिए छोटे छोटे बांध बनाकर एकत्रित किया जा सके तथा भीषण गर्मी में पृथ्वी की सतह में नमी रहे साथ ही जल स्तर बढ़ने से सूखे कुओं और बावड़ी में पेय जल बना रहे।इसके लिए उन्होंने राजस्थान के बावली ग्राम तथा तमिलनाडु के कल्लनई बांध का हवाला दिया है।

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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा