

मुंबई 29 अगस्त ( हि.स.) । इस बार भी ठाणे महानगर पालिका ने हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग मुहावरे को चरितार्थ करते हुए , ठाणे नगर निगम की पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव की अवधारणा डेढ़ दिन के विसर्जन में ठाणे महानगर पालिका की पर्यावरण अनुकूल विसर्जन व्यवस्था लगता है कि पूर्णतः विफल रही है। ठाणे के प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ प्रशांत रवींद्र सिनकर ने आज कहा कि टीएमसी ने पर्यावरण अनुकूल विसर्जन व्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए लाखों रुपये की लागत से शहर भर में कृत्रिम विसर्जन झीलें के निर्माण पर लगता है कि पानी फेर दिया है । शायद श्रद्धालु भक्तों में इसका कोई असर नहीं देखा। कई लोगों ने सीधे खाड़ियों में मूर्तियों का विसर्जन कर दिया। परिणामस्वरूप, टीएमसी के करोड़ों रुपये बर्बाद हुए ही खाड़ियों का प्रदूषण भी बढ़ गया। ठाणे नगर निगम के पर्ववरण अनुकूल गणेश प्रतिमा विसर्जन अभियान पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गए हैं।
बताया जाता है कि पर्यावरण अनुकूल विसर्जन व्यवस्था बनाने के लिए टीएमसी में काफी तैयारी दिखाई थी,लाखों रु खर्च कर छह फूट ऊंची प्रतिमाएं विसर्जन हेतू विशाल कृत्रिम तालाब भी बनाए गए थे,शादू मिट्टी की मूर्ति हेतू कार्यशाला भी आयोजित हुई मगर ढाक के वही तीन पात वाली कहावत चरितार्थ करते हुए ठाणे नगर निगम की सतही पर्यावरणीय पहलों से हालाँकि सिर्फ़ फ़ोटो खिंचवाने का ही काम ही लगता है, लेकिन बाप्पा की मूर्तियाँ, जो ठाणेकरों के पूजा स्थल हैं कि हुआ है।, अंततः फलस्वरूप प्रदूषण की लहर में डूब रही हैं। पॉपकॉर्न जैसी खतरनाक मूर्तियाँ पानी में मिल रही हैं और जैव विविधता को नष्ट कर रही हैं। स्थानीय मछुआरा समुदाय इस प्रदूषण से सबसे ज़्यादा पीड़ित है। मछुआरे, जो कभी मछली पकड़कर अपना गुज़ारा करते थे, अब दो वक़्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस विसर्जन से उनके जीवन पर असर पड़ रहा है।
पर्यावरणविद् डॉ. प्रशांत रवींद्र सिनकर ने इस संबंध में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक सीधा स्मरण पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने कृत्रिम झील पहल की विफलता को उजागर किया है और कहा है कि सार्वजनिक धन की बर्बादी रोकना और वास्तविक रूप से प्रभावी उपाय करना समय की मांग है। पर्चे, विज्ञापन और ढोल-नगाड़ों पर पैसा बर्बाद करके जनता को गुमराह करना बंद होना चाहिए। खाड़ियों में विसर्जन रोकने के लिए सख्त कानून, जन जागरूकता और व्यावहारिक उपायों की आवश्यकता है। अन्यथा, पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव केवल एक कागजी नारा बनकर रह जाएगा।
आज, डॉ. प्रशांत रवींद्र सिनकर ने अपने स्मरण पत्र में स्पष्ट रूप से मांग की है कि:
1) कृत्रिम विसर्जन झील पहल की विफलता की तत्काल समीक्षा की जाए।
2) खाड़ियों में पीओपी और रासायनिक रंगों से रंगी मूर्तियों के विसर्जन को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाए।
3) वास्तव में व्यवहार्य और प्रभावी पर्यावरण-अनुकूल विसर्जन विधियों को लागू किया जाए।
ठाणे के प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ प्रशांत ने टीएमसी को मशविरा दिया है कि प्रशासन को श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुँचाए बिना पर्यावरण और खाड़ी को बचाने की अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। अन्यथा, ठाणेवासियों का विश्वास टूट जाएगा और पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव का नारा उपहास का विषय बन जाएगा।”
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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा
