
मुंबई ,3 अक्टूबर ( हि. स.) । मराठी भाषा दुनिया भर के 72 देशों में बोली जाती है। भारत में भी इसका प्रचलन सर्वत्र है। इसलिए, आर्थिक लेन-देन भी इसी भाषा में होता है। इसीलिए मराठी से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में व्यावसायिक अवसर भी मौजूद हैं। हमारी शास्त्रीय मराठी भाषा आजीविका का साधन भी है। इसे लेकर किसी भी तरह की गलतफहमी रखने की ज़रूरत नहीं है, आज ऐसाआज शुक्रवार को वरिष्ठ लेखक डॉ. महेश केलुस्कर ने कहा।
मराठी भाषा को 03 अक्टूबर, 2024 को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। इस अवसर पर, 03 अक्टूबर से 09 अक्टूबर तक पूरे राज्य में शास्त्रीय मराठी भाषा सप्ताह मनाया जा रहा है। इसी के तहत, ठाणे नगर निगम द्वारा विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है। आज शुक्रवार सुबह नगर निगम मुख्यालय, स्वर्गीय नरेंद्र बल्लाल हॉल में शुरू हुई यह चर्चा व्याख्यानमाला का 17वां पुष्प था। वरिष्ठ लेखक डॉ. महेश केलुस्कर ने ‘मराठी भाषा की शास्त्रीयता’ विषय पर व्याख्यान दिया। इस अवसर पर उपायुक्त उमेश बिरारी, अग्निशमन विभाग प्रमुख गिरीश झलके, उपनगर अभियंता गुणवंत जाम्ब्रे, उप चिकित्सा अधिकारी डॉ. स्मिता हमरास्कर, सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी रवींद्र मांजरेकर, उप सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी प्राची डिंगणकर आदि उपस्थित थे।
हालांकि मराठी भाषा को अब क्लासिक का दर्जा मिल गया है, फिर भी यह एक क्लासिक भाषा है। यह भाषा पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रही है। लीलाचरित्र ग्रंथ भाषा का श्रृंगार हैं। भाषा संचार का एक साधन है, इसके साथ ही समाज की संस्कृति भाषा की आत्मा है, ऐसा वरिष्ठ लेखक डॉ. महेश केलुस्कर ने कहा। मराठी भाषा लगभग 2500 वर्षों से अस्तित्व में है। इसलिए, मराठी प्रकृति में क्लासिक है। शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करने के लिए, भाषा दो हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी होनी चाहिए, उसे निरंतरता, मौलिकता, अखंडता के मानदंडों पर खरा उतरना चाहिए, और साथ ही, प्राचीन भाषा आधुनिक भाषा व्याकरण पर आधारित होनी चाहिए। चूँकि मराठी भाषा इन सभी मानदंडों पर खरी उतरती है, इसलिए 3 अक्टूबर, 2024 को केंद्र सरकार द्वारा मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया है, । डॉ. केलुस्कर का कहना है कि इस दर्जे से देश के 450 विश्वविद्यालयों में मराठी के अध्ययन-अध्यापन के लिए धन उपलब्ध होगा, प्राचीन ग्रंथों के अनुवाद के लिए धन उपलब्ध होगा, और भाषा अध्ययन केंद्र स्थापित किए जाएँगे।
मराठी भाषा इसी भावना को व्यक्त करती है। भाषा सभी को सक्रिय और प्रेरित रखती है। मराठी भाषा का क्या होगा, इसकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस भाषा में हर साल लगभग 2000 पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, हर साल लगभग 500 दिवाली अंक प्रकाशित होते हैं। भाषा आजीविका का एक साधन भी है। मराठी भाषा में आर्थिक लेन-देन भी बड़े पैमाने पर होता है। जो लोग धाराप्रवाह मराठी भाषा बोलते हैं, उनके लिए कोई मृत्यु नहीं है। अनुवाद, रिपोर्टिंग और होस्टिंग के साथ-साथ चैनलों को मराठी भाषा में निपुण लोगों की भी आवश्यकता होती है। इसलिए हमें मराठी भाषा सीखने, लिखने और पढ़ने पर ज़ोर देना चाहिए, यह भी उन्होंने बताया। डॉ. केलुस्कर ने कविता पाठ के साथ व्याख्यान का समापन किया।
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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा
