
नई दिल्ली, 26 अगस्त (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मंगलवार को विज्ञान भवन में आयोजित व्याख्यानमाला में कहा कि संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसलिए की थी क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान समाज को सही दिशा में प्रबोधित करने का कार्य अधूरा रह गया था।
डॉ. भागवत ने “100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज” विषयक तीन दिवसीय व्याख्यानमाला में कहा कि डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि समाज निर्माण की दिशा में किसी के पास समय नहीं था, इसलिए उन्होंने स्वयं पहल की। संघ का विचार उनके मन में कई वर्षों पहले आया था और 1925 की विजयादशमी को इसकी औपचारिक घोषणा की गई। उन्होंने कहा, “डॉ. हेडगेवार का मानना था कि संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन ही राष्ट्र निर्माण का आधार है। जो अपने नाम के साथ ‘हिंदू’ जोड़ता है, वह देश और समाज के प्रति जिम्मेदार बनता है।”
सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि ‘हिंदू’ शब्द किसी बाहरी पहचान का प्रतीक नहीं, बल्कि व्यापक मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण है। भारत की परंपरा व्यक्ति, समाज और सृष्टि को एक-दूसरे से जुड़ा और प्रभावित मानती है। डॉ. हेडगेवार के अनुसार मनुष्य का वास्तविक विकास तभी संभव है जब वह व्यक्तिगत उन्नति के साथ समाज और सृष्टि के विकास को भी अपनाए।
भागवत ने डॉ. हेडगेवार के जीवन का उल्लेख करते हुए कहा, “वे जन्मजात देशभक्त थे। कोलकाता (तब कलकत्ता) में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उनका संबंध अनुशीलन समिति से हुआ। त्रिलोक्यानाथ और रासबिहारी बोस की पुस्तकों में उनका उल्लेख आता है। उनका कोड नाम ‘कोकीन’ था।”
उन्होंने कहा कि इस देश में हिंदू, सिख और बौद्ध आपस में संघर्ष नहीं करेंगे, बल्कि राष्ट्र के लिए जिएंगे और बलिदान देंगे। नेता, नीति और पार्टी सहायक तत्व हैं, किंतु मूल कार्य समाज का परिवर्तन है।
भागवत ने कहा कि भारत माता ने अपने बच्चों को संस्कार दिए हैं, जिनके लिए पूर्वजों ने बलिदान दिए। वही पूर्वज संघ के प्रेरणा केंद्र हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुओं के अलग-अलग प्रकार हैं—कुछ गर्व से इसे मानते हैं, कुछ सामान्य मानते हैं और कुछ किसी कारणवश स्वीकार नहीं करते।
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(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार
