
–भारत की विविध भाषाओं के बीच का सेतु है हिन्दी : प्रो. अखिलेश कुमार दुबे–हिन्दी विश्वविद्यालय में मनाया गया हिन्दी दिवसप्रयागराज, 15 सितम्बर (Udaipur Kiran) । हिन्दी का विरोध इसलिए होता है क्योंकि हिन्दी लगातार आगे बढ़ रही है। जबकि हिन्दी राष्ट्रीय एकता का प्रमुख साधन है। भारत के किसी भी कोने या राज्य में जाएं, वहां हिन्दी की उपस्थिति और समझ आपको सहज ही मिलती है। हिन्दी देश की सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा होने के साथ ही एक ऐसी भाषा है जो भले ही विभिन्न राज्यों में स्थानीय भाषाओं के साथ मिश्रित हो, लेकिन सार्वभौमिक स्तर पर संवाद का माध्यम बनी हुई है।उक्त विचार मुख्य वक्ता वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी उत्तर मध्य रेलवे, प्रयागराज के डॉ. अमित मालवीय ने सोमवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र, झूंसी प्रयागराज में व्यक्त किया। हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा और विकसित भारत का संकल्प विषय पर ज्ञानोत्सव के रूप में गोष्ठी में सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा का कोई दूसरा विकल्प हमारे देश में नहीं है, क्योंकि हिन्दी न केवल भारत की आधिकारिक भाषा है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता का भी प्रमुख साधन है। हिन्दी वह भाषा है जो देश के अधिकतर हिस्सों में समझी और बोली जाती है और जो विभिन्न भाषाई समुदायों को आपस में जोड़ती है।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए क्षेत्रीय केंद्र के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे। हिन्दी ने भारत की विविध भाषाओं के बीच सेतु का कार्य करते हुए राष्ट्रीय एकता और समरसता को बढ़ावा दिया है। हिन्दी ने न केवल भारत का नेतृत्व भाषा के रूप में किया है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक आत्मा और सामाजिक सामंजस्य की कड़ी बनकर उभरी है। हिन्दी के विकास के साथ ही भारत ने अपनी विविधताओं के बीच एकता को भी मजबूत किया है। इसे आगे बढ़ाने और समृद्ध करने की जिम्मेदारी हम सब की है। विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए हम सभी सरकार, नागरिक, युवा एवं विभिन्न संस्थानों को मिलकर काम करना होगा। यह संकल्प हमारे देश को एक वैश्विक महाशक्ति बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए हरित और समृद्ध भारत की नींव रखेगा।
इस अवसर पर स्त्री अध्ययन विभाग की सह आचार्य डॉ. सुप्रिया पाठक ने कहा कि हिन्दी केवल शब्दों का समूह नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, साहित्य, परम्परा और सामूहिक चेतना का वाहक है। हिन्दी हमारे रोम-रोम में इसलिए समाई हुई है क्योंकि यह हमारी बोली, हमारी भावनाओं और हमारे विचारों की सहज अभिव्यक्ति है। हिन्दी हमारे माथे की बिंदिया है, जिसके बिना हम सुशोभित भी नहीं होते। हिन्दी विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा और हमारी अस्मिता की पहचान भी है।
सह आचार्य डॉ. अवंतिका शुक्ला ने कहा कि हर समाज और राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा से होती है। हमारी मातृभाषा हमें विचारों की स्वतंत्रता, भावनाओं की सच्चाई और संस्कृति से जुड़ाव प्रदान करती है। यदि हम अपनी भाषा का मूल्य नहीं समझेंगे, तो राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक धरोहर भी कमजोर पड़ सकती है। हमें अपनी भाषा का बहुत सम्मान करना है। इस अवसर पर जनसंचार विभाग के सहायक आचार्य डॉ.अख्तर आलम ने कहा कि हिन्दी भाषा के उत्थान और विकास में मीडिया और सिनेमा ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज हिन्दी न सिर्फ भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है, बल्कि विश्व मंच पर भी अपनी पहचान बना रही है।
इसके पूर्व अतिथियों ने सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। केंद्र के अकादमिक निदेशक ने अतिथियों को स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. मिथिलेश तिवारी ने एवं आभार ज्ञापन अनुवाद विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सत्यवीर ने किया।
इस अवसर पर जयेंद्र जायसवाल, राहुल त्रिपाठी, गीता देवी, देवमूर्ति द्विवेदी, बिरजू प्रसाद, जगजीवन राम प्रजापति, रोहित पीतांबर, अभिषेक चंद्रा, रश्मि, प्रत्यूष शुक्ल, उमेश शर्मा, राजकुमार यादव, मंजरी कुशवाहा, दीक्षा द्विवेदी, श्वेता पाण्डेय, अनन्या शुक्ला, प्रशांत पाण्डेय, प्रभात मिश्रा, खुशबू सिंह, दीपेश कुमार सहित विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित थे।
(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
