Uttrakhand

रवांई जौनसार में एक माह बाद  मनाई जाती है  दीवाली

उत्तरकाशी, 20 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । एक ओर जहां पूरे देशभर में कार्तिक माह की दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है, वहीं उत्तराखंड के देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार और उत्तरकाशी जिले के रवांई घाटी , जौनपुर क्षेत्र में एक माह बाद मार्गशीर्ष (मंगसीर) में दीपावाली (देवलांग) मनाईं जाती है!

गंगोत्री तीर्थ क्षेत्र ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन शोध ग्रंथ के लेखक उमा रमण सेमवाल बताते हैं कि वर्ष 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर घुसकर लूटपाट करते थे।

फलस्वरूप राजा द्वारा अपने महानायक माधौ सिंह भंडारी व सेनापति लोदी रिखोला के नेतृत्व में तिब्बत फतह के लिए चमोली के पैनखंडा व उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से बड़ी सेना को द्वापा तिब्बत आक्रमण के लिए भेजा! आक्रमण माणा-नीती-चोरहोती होकर छपराड़ यानी दापाघाट के राजा काकुआमोर पर किया गया! यहाँ एक सन्दर्भ यह भी आता है कि राजा द्वारा माधौ सिंह भंडारी को इस युद्ध से वापस बुला लिया गया था क्योंकि तब लंगूर गढ़ी पर भी आक्रमण हुआ था लेकिन इसके प्रमाण नहीं मिलते! पूरा साल गुजर गया लेकिन श्रीनगर से मीलों दूर तिब्बत से कोई खबर नहीं मिल पाई! 12 बग्वाल 16 श्राद्ध भी निकल गए लेकिन जब इस सेना के सेनापतियों का कोई संदेश नहीं पहुंचा तो क्या माधौ भंडारी का मलेथा व क्या लोदी रिखोला का बयाली गाँव..सब जगह मातम पसर गया! पूरा कार्तिक माह निकलने को था! दीवाली में भी पहाड़ का अन्धेरा छंटने का नाम नहीं ले रहा था! आखिर एक दिन एक दूत राजदरबार में संदेश लेकर पहुंचता है कि विजयी सेना तिब्बत फतह कर लौट रही है व महासेनापति माधौ सिंह भंडारी ने संदेश भिजवाया है कि श्रीनगर पहुँचने पर बग्वाली जश्न की तैयारी हो।

दूसरी ओर पहाड़ों में कार्तिक मास की दीपावली के दौरान खेतों के कार्य अधिक होने के कारण कार्तिक मास की दिवाली को धूमधाम से नहीं मना पाते हैं यही वजह है कि एक परंपरा के रूप में आज भी एक महीने बाद रवांई ,जौनपुर और जौनसार क्षेत्र में दीपावाली , देवलांग मानने का रिवाज है। उत्तरकाशी जिले के पुरोला तहसील के दो जनजातीय गांव कुफारा और धकाड़ा ऐसे हैं जहां कार्तिक माह की दीपावली को कोई त्योहार ही नहीं मानते है। इन दोनों गांवों में दीपावली का पर्व एक माह बाद मार्गशीर्ष में मंगसीर दिवाली के रूप में धूमधाम से मनाई जाता है।

स्थानीय निवासी सोबन शर्मा बताते हैं कि हमारे पूर्वजों से चली आ रही परंपरा के अनुसार दीपावली मार्गशीर्ष में मनाई जाती है। इस दौरान हम अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं और पारंपरिक पोशाक, पकवान, रासो और तांदी गीतों के साथ उत्सव मनाते हैं।

(Udaipur Kiran) / चिरंजीव सेमवाल

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