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डिजिटल तकनीक बदल रही है अपराध का चेहरा : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–सोशल मीडिया पर अश्लील तस्वीरों का प्रसार जीवन को बर्बाद कर सकता है : हाईकोर्ट–आरोपित की जमानत अर्जी खारिज

प्रयागराज, 05 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने व्हाट्सएप के माध्यम से एक महिला की अश्लील तस्वीरें प्रसारित करने के आरोपित व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि जब ऐसी तस्वीरें सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर साझा की जाती हैं, तो उनमें “जीवन को नष्ट करने“ की क्षमता होती है।

न्यायमूर्ति अजय भनोट ने कहा डिजिटल प्रौद्योगिकी अपराध का चेहरा बदल रही है। किसी व्यक्ति की अश्लील तस्वीरें जब सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक मंचों पर प्रसारित होती हैं तो वे जीवन को नष्ट कर सकती हैं। यह कठोर सामाजिक वास्तविकता है।

याची आरोपी रामदेव पर धारा 74, 352, 351(2), 64(1) बीएनएस और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 ए के तहत मामला थाना- उतराव, प्रयागराज में दर्ज किया गया है। उसे पीड़िता की निजी तस्वीरों को व्हाट्सएप पर प्रसारित करने के आरोप में इस साल जनवरी में गिरफ्तार किया गया था। अप्रैल 2025 में ट्रायल कोर्ट द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था। उनके खिलाफ आरोपों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि उनके पास से कुछ तस्वीरें बरामद की गई हैं। उनकी फोरेंसिक जांच लंबित है। अपराध में उनकी संलिप्तता की संभावना है।

अदालत ने याची को जमानत देने से इनकार कर दिया क्योंकि इसमें डिजिटल अपराधों के बढ़ते खतरे और उनके भयावह सामाजिक प्रभाव पर प्रकाश डाला गया था। हालांकि कोर्ट ने जिला न्यायाधीश को मामले की सुनवाई की प्रगति की साप्ताहिक रिपोर्ट लेने का निर्देश दिया। इसके अलावा, संबंधित फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला के उप निदेशक को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया गया कि एफएसएल रिपोर्ट दो महीने के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाए।

यद्यपि पीठ ने जमानत याचिका खारिज कर दी, लेकिन उसने शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता पर बल दिया तथा निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह कार्यवाही को शीघ्रातिशीघ्र एक वर्ष के भीतर पूरा कर ले। इसी पीठ ने 2023 में कहा था कि सोशल मीडिया पर अश्लील वीडियो का प्रसार एक बड़ी समस्या है जो हमारे समाज को अपमानित कर रही है। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया था कि ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारियों को जांच करते समय उच्चतम दक्षता सुनिश्चित करनी चाहिए।

महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने यह भी कहा था कि ऐसे मामलों में यूपी पुलिस की जांच की गुणवत्ता “बहुत कमजोर” है। इसी प्रकार, पिछले वर्ष मई में भी इसी पीठ ने महिलाओं के अभद्र वीडियो के भंडारण और प्रसार के बढ़ते मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी तथा इसे समाज के लिए एक गंभीर खतरा बताया था। अदालत ने कहा था कि आईटी से संबंधित अपराधों और साइबर अपराधों की जांच की खराब गुणवत्ता, जांच की कार्यप्रणाली में एक “बड़ी खामी“ बन रही है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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