Uttrakhand

श्रद्धा के साथ मना धन,स्वास्थ्य और सुरक्षा का पर्व धनतेरस

सजी दुकानें
भगवान धन्वंतरि

हरिद्वार, 18 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । शनिवार को तीर्थनगरी में धन त्रयोदशी का पर्व श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया गया। पर्व पर लोगों ने जहां भगवान धंवतरी की पूजा-अर्चना कर स्वस्थ जीवन की कामना की, वहीं लोगों ने यम के निमित्त दीपदान कर सुख-समृद्धि की कामना की। बाजारों में भी खासी भीड़ रही। लोगों ने जमकर खरीददारी कर धनतेरस का पर्व मनाया। सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस प्रशासन की ओर से भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।

धनतेरस अर्थात धन त्रयोदशी, तीर्थ नगरी में श्रद्धा के साथ मनायी गयी। लोगों ने भगवान धनवंतरी का पूजन-अर्चन किया। आयुर्वेद चिकत्सकों ने धनवंतरी भगवान का पूजन कर सर्वे भवंतु सुखिनः की कामना की। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी समुद्र से हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस उनके प्रकटोत्सव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। धनवंतरी भगवान को आरोग्य का देवता और आयुर्वेद का जनक कहा जाता है।

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन, समुद्र मंथन के दौरान, भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनके हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश था। भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश और चिकित्सा का देवता (देवताओं के वैद्य) माना जाता है। चूँकि वह अमृत कलश के साथ प्रकट हुए, इसलिए इस तिथि को धन (धनवंतरि) और तेरस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन उनकी पूजा करने से अच्छे स्वास्थ्य और रोगों से मुक्ति मिलती है, और इसीलिए इसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है।

एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार यमराज और राजा हिम के पुत्र की कथा के अनुसार राजा हिम का एक सोलह वर्षीय पुत्र था। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि विवाह के चौथे दिन साँप के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। जब राजकुमार का विवाह हुआ, तो उसकी नवविवाहित पत्नी को इस भविष्यवाणी का पता चला। मृत्यु के निर्धारित दिन, उसकी पत्नी ने अपने पति को सोने नहीं दिया। उसने अपने शयनकक्ष के द्वार पर सोने और चाँदी के सिक्के और आभूषणों का एक ढेर लगा दिया और चारों ओर बहुत सारे दीये जला दिए। वह रात भर अपने पति को कहानियां सुनाती रही और गीत गाती रही ताकि वह जागता रहे। जब यमराज साँप के रूप में राजकुमार के प्राण हरने आए, तो दीयों और आभूषणों की चमक से उनकी आंखें चौंधिया गईं।

सांप (यमराज) उस कक्ष में प्रवेश नहीं कर पाए और सिक्कों के ढेर पर बैठ गए, रात भर कहानियाँ और गीत सुनते रहे। सुबह होने पर, यमराज बिना प्राण लिए ही चुपचाप वापस चले गए। इस प्रकार, नवविवाहित पत्नी की बुद्धिमानी और दीयों की रोशनी ने राजकुमार को अकाल मृत्यु से बचा लिया। तभी से यह दिन अकाल मृत्यु के भय को दूर करने और दीर्घायु के लिए मनाया जाने लगा। इसलिए धनतेरस की शाम को यमराज के लिए भी एक दीपक (जिसे यम दीप कहते हैं) घर के बाहर जलाया जाता है।

इन दोनों कथाओं के कारण धनतेरस पर धन (लक्ष्मी, कुबेर), स्वास्थ्य (धन्वंतरि) और सुरक्षा (यम दीप), तीनों की पूजा का महत्व है। इसी के चलते सांयकाल के समय लोगों ने यम को दीपदान कर सुरक्षा की कामना की।

(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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