शिमला, 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । संवैधानिक संशोधन के जरिए केंद्रीय कानून से हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का कानूनी दर्जा तो डेढ़ साल पहले मिल गया, लेकिन हिमाचल में अब तक यह कानून लागू नहीं हो पाया है। नतीजा, इस समाज के 40 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं का करियर संकट में फंस गया है और वे स्कॉलरशिप सहित कई सरकारी लाभ से वंचित हैं।
हाटी समाज के सबसे बड़े संगठन केंद्रीय हाटी समिति की शिमला इकाई ने इसे संसद और कानून का अपमान करार देते हुए राज्य सरकार से हिमाचल हाईकोर्ट में इस मामले की प्रमुखता से पैरवी करने की मांग की है। समिति के अध्यक्ष डॉ. रमेश सिंगटा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष दलिप सिंगटा और मीडिया प्रभारी अनुज शर्मा ने पत्रकार वार्ता में बताया कि राज्य सरकार के लटकाऊ रवैये और सियासी चतुराई के कारण हजारों छात्रों की मेहनत पर पानी फिर रहा है।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति सर्टिफिकेट के अभाव में छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप नहीं मिल पा रही है। कई अभ्यर्थी एसटी कोटे से प्रतियोगी परीक्षाएं पास कर चुके हैं, लेकिन प्रमाण पत्र न मिलने से उन्हें फिर से सामान्य कोटे से आवेदन कर दोबारा तैयारी करनी पड़ रही है।
समिति ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने केंद्रीय कानून को लागू करने के बजाय उसकी गलत व्याख्या की और लॉ डिपार्टमेंट की राय लेकर कुछ लोगों को कोर्ट में भेजकर मामला लटकाया। जबकि केंद्रीय कानून में राज्य सरकार कोई बदलाव नहीं कर सकती थी।
समिति ने प्रदेश के राज्यपाल से तुरंत हस्तक्षेप करने की अपील की है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भी इस मामले में दखल देने और अदालत में मजबूती से पैरवी कराने की मांग की है। समिति ने सवाल उठाया कि सरकार ने मुख्य संसदीय सचिवों की सदस्यता बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में तेजी से पैरवी की, लेकिन हाटी समाज के छात्रों के मामले में ऐसा भेदभाव क्यों?
समिति ने साफ किया कि वह किसी नेता या दल के खिलाफ नहीं है, बल्कि सिर्फ हाटी समाज के हक के लिए संघर्ष कर रही है। समिति पहले भी महाखुमली जैसे आंदोलन के जरिए समाज को एकजुट कर चुकी है।
अगर मामला ऐसे ही लटकता रहा तो समिति ने चेताया कि हाटी समाज फिर से देवी-देवताओं की शरण में जाएगा और बड़ा आंदोलन छेड़ेगा।
—————
(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
