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(लीड) परिवर्तन के लिए लोकतांत्रिक मार्ग ही उचितः संघ

डॉ. मोहन भागवत नागपूरच्या विजया दशमी उत्सवात मार्गदर्शन करताना
नागपूरच्या विजयादशमी उत्सवात डॉ. मोहन भागवत आणि रामनाथ कोविंद

नागपुर, 02 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आज कहा कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। यदि समाज में व्यापक परिवर्तन लाना है तो वह केवल लोकतांत्रिक मार्ग से ही संभव है। लगभग 40 मिनट के भाषण में डॉ. भागवत ने समाज में आ रहे बदलाव, पड़ोसी देशों में उथल-पुथल, अमेरिकी टैरिफ, सरकारों का रवैया, लोगों में बेचैनी समेत कई ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बात रखी।

डॉ. भागवत गुरुवार को यहां के रेशिमबाग मैदान में संघ की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित विजयादशमी उत्सव को संबोधित कर रहे थे। डॉ. भागवत के साथ मंच पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, विदर्भ प्रांत के संघचालक दीपक तामशेट्टीवार, प्रांत के सह संघचालक श्रीधरजी गाडगे और नागपुर महानगर के संघचालक राजेश लोया उपस्थित थे।

संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने समाज में जानबूझकर फैलाए जा रहे द्वेष और घृणा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि श्रद्धास्थानों का अपमान, महापुरुषों के बारे में अपप्रचार और कानून हाथ में लेने की घटनाओं के माध्यम से समाज को तोड़ने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। ये घटनाएं पूर्वनियोजित होती हैं और विशेष समुदायों को भड़काने के लिए की जाती हैं। ऐसे जाल में फंसना राष्ट्रहित के विरुद्ध है।

श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में सत्ता परिवर्तन के लिए हुई हिंसक घटनाओं का उल्लेख करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में भी अस्थिरता फैलाने वाली शक्तियां सक्रिय हैं, जिन्हें समय रहते पहचान कर रोकना आवश्यक है। भारत की समृद्धि के लिए पड़ोसी देशों में शांति और स्थिरता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि हिंदू, हिंदवी, भारतीय, आर्य- ये सभी समानार्थी शब्द हैं, लेकिन जो शब्द हमारे राष्ट्रीय स्वरूप को स्पष्ट रूप से दर्शाता है, वह है हिंदू। हमारा राष्ट्र राज्य की सीमाओं पर आधारित नहीं है, बल्कि संस्कृति के आधार पर निर्मित हुआ है। राज्य आते-जाते रहते हैं, परंतु राष्ट्र सतत विद्यमान रहता है। इसीलिए हमारा यह राष्ट्र सनातन काल से एक हिंदू राष्ट्र है।

पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान से आए दहशतगर्दों द्वारा 26 पर्यटकों की धर्म के आधार पर की गई नृशंस हत्या की घटना पर डॉ. भागवत ने कहा कि इस हमले ने पूरे देश को दुख, शोक और आक्रोश में डुबो दिया। इसके जवाब में भारत सरकार ने एक सुनियोजित कार्रवाई की। उन्होंने कहा, इस घटना ने हमें सिखाया कि भले ही हम सभी से मैत्रीपूर्ण संबंध रखें, परंतु हमें अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना ही होगा। भागवत ने कहा कि इस घटनाक्रम के पश्चात, हमने यह भी देखा कि कौन-से देश भारत के सच्चे मित्र हैं और कौन शत्रु हैं।

आत्मनिर्भर भारत समय की मांग

महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर भागवत ने कहा कि गांधीजी स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य शिल्पकार थे। स्वतंत्र भारत के ‘स्व’ आधारित विकास दृष्टिकोण में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। अमेरिका की व्यापार नीतियों का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि विश्व आज परस्परावलंबी है, लेकिन आत्मनिर्भरता के बिना कोई मार्ग नहीं है। उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को समय की मांग बताया।

नेतृत्व, चरित्र, राष्ट्रभक्ति की पाठशाला है शाखा

संघ की शाखाएं केवल शारीरिक प्रशिक्षण का माध्यम नहीं हैं, बल्कि यह राष्ट्रभाव, नेतृत्व, चरित्र निर्माण और राष्ट्रभक्ति का संगम हैं। जब समाज संगठित हो जाता है, तब उसे किसी अवतार, नेता या सरकार पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती। समाज स्वयं अपनी शक्ति से परिवर्तन लाता है। डॉ. भागवत ने कहा कि संघ का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जो अपने बलबूते पर राष्ट्र की सभी ज़िम्मेदारियां उठा सके। इसके लिए व्यक्ति और राष्ट्र के चरित्र का निर्माण आवश्यक है। शाखा में यही संस्कार दिये जाते हैं।

भारत को बनाना है विश्वगुरु

संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को जीवित रखने वाली संस्कृति है। यह संस्कृति कभी ‘हम और वे’ की मानसिकता में विश्वास नहीं करती। ऐसे में हिंदू समाज का कर्तव्य है कि वह संगठित होकर भारत को फिर से एक वैभवशाली राष्ट्र बनाए और विश्व को नई दिशा प्रदान करे। पिछले 100 वर्षों से यही कार्य संघ द्वारा किया जा रहा है।

कोविंद बोले- संघ में नहीं जातीय भेदभाव

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जातीय आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता और संघ सामाजिक एकता का पक्षधर रहा है। उन्होंने अपने जीवन में डॉ. हेडगेवार और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के योगदान को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने बाबासाहब के 1949 में संविधान सभा के सम्बोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि उनमें और संघ के चिंतन में समानता दिखती है जहां एकता है, वहां अस्मिता है और जहां विभाजन है, वहां पतन होता है।

कोविंद ने कहा, ”संघ की विचारधारा और स्वंयसेवकों से मिलने का अवसर 1991 के आम चुनाव के दौरान हुआ। उस चुनाव अभियान के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों से मिलने का अवसर मिला। अब भी समाज के कई लोगों को यह जानकारी नहीं है कि संघ में किसी भी तरह की अस्पृश्यता या जातिगत छुआछूत नहीं है। संघ में किसी प्रकार का जातिगत भेदभाव नहीं होता है। इस संदर्भ में 2001 में लाल किले के परिसर में आयोजित दलित संगम रैली का मैं जिक्र करना चाहूंगा। कुछ लोग अटलजी को दलित विरोधी होने का दुष्प्रचार करते थे। अटलजी ने कहा था कि हम अंबेडकरवादी हैं। भीम स्मृति अर्थात भारत का संविधान। मनु स्मृति के आधार पर हमारी सरकार काम नहीं करेगी। हमारी सरकार भीम स्मृति अर्थात भारत के संविधान पर काम करेगी। राष्ट्रपति पद का निर्वहन करते हुए मैंने संवैधानिक मूल्यों को, बाबा साहब के मूल्यों को प्राथमिकता दी।”

पूर्व राष्‍ट्रपति कोविंद ने कहा, ”सभी को विजयदशमी की हार्दिक बधाई। सुखद संयोग है कि आज महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्रीजी की जयंती है। मैं इस अवसर पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। सबसे बड़ी स्वंयसेवी संस्था का शताब्दी समारोह संपन्न हो रहा है। बाबा साहब की दीक्षा भूमि का दर्शन करने का सौभाग्य मिला। डॉ. हेडगेवार, श्रीगुरुजी, रज्जू भैया के प्रति हार्दिक श्रद्धाजंलि अर्पित करता हूं। डॉ. हेडगेवार ने संगठन का जो पौधा लगाया, गुरुजी ने उसकी जड़ें मजबूत कीं और रज्जू भैया ने आर्थिक बदलाव के बीच संघ को मार्गदर्शन दिया।” कोविंद ने आगे कहा कि उनके जीवन निर्माण में डॉ. हेडगेवार और डॉ. आंबेडकर का अहम योगदान रहा है।

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(Udaipur Kiran) / पवन कुमार

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