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बाबासाहेब आप्टे की 122वीं जयंती पर गुवाहाटी में मना समर्पण दिवस

गुवाहाटीः बाबासाहेब आप्टे की 122वीं जयंती पर आयोजित समर्पण दिवस को संबोधित करते अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव हेमंत धिंग मजूमदार

– बाबासाहेब आप्टे की प्रबल इच्छा थी कि वे अगले जन्म में असम में जन्म लें और खुद को संघ के काम में समर्पित कर दें : हेमंत धिंग मजूमदार

गुवाहाटी, 25 अगस्त (Udaipur Kiran) । अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के प्रेरणास्रोत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे उमाकांत केशव आप्टे उर्फ बाबासाहेब आप्टे की 122वीं जयंती के अवसर पर गुवाहाटी में समर्पण दिवस मनाया गया।

रविवार देर शाम भरलुमुख स्थित आलोक भवन के मधुकर लिमये सभागार में भारतीय इतिहास संकलन समिति, कामरूप महानगर, असम द्वारा आयोजित समारोह में मुख्य वक्ता अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव हेमंत धिंग मजूमदार थे।

मजूमदार ने संस्कृत, मराठी, हिंदी आदि भाषाओं के प्रखर विद्वान, इतिहास के प्रकांड विद्वान, भारतीय संस्कृति के मनीषियों में से एक, संघ के अखिल भारतीय प्रचारक-प्रमुख बाबासाहेब आप्टे के जीवन और दर्शन पर एक व्याख्यान दिया। हेमंत ने कहा कि आप्टेजी वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि भारतीय ग्रंथों के प्रकांड विद्वान थे। आप्टेजी एक मौलिक विचारक, भारतीय मूल्यों, आदर्शों और सांस्कृतिक विशिष्टता के जीवंत प्रतीक थे।

आप्टेजी हमेशा कहते थे कि यदि हम अपनी पहचान को नहीं समझेंगे, तो हम इतिहास और राष्ट्रीयता के बोध से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि जब तक हमें विदेशियों द्वारा रचित विकृत इतिहास पढ़ाया जाता रहेगा और सही इतिहास लेखन शुरू नहीं होगा, तब तक राष्ट्रीय पहचान सदैव खतरे में रहेगी। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक देश का वास्तविक इतिहास लिखने की उनकी प्रबल इच्छा थी ताकि भारत की गौरवशाली परंपरा और जीवन तथा लुप्त सत्य घटनाओं की सही पहचान मिल सके। अतः देश में लगभग 42 वर्षों तक संघ कार्य में अपने निरंतर योगदान से उन्होंने इतिहास के अनेक विद्वानों को विदेशियों द्वारा रचे गए विकृत भारतीय इतिहास को सही जानकारी के साथ पुनः लिखने के लिए प्रेरित किया। उनकी इसी इच्छा से भारतीय इतिहास संकलन योजना का जन्म हुआ।

बाबासाहेब आप्टे अनेक अन्य राष्ट्रवादी संगठनों के प्रवर्तक थे। इस संदर्भ में, वक्ता हेमंत धिंग मजूमदार ने बहुभाषी ‘ (Udaipur Kiran) ’ का विषय भी उठाया। उन्होंने कहा कि देश के समाचार जगत में राष्ट्रवादी शून्यता को देखते हुए, आप्टे जी ने विचार किया कि देश में एक बहुभाषी समाचार संगठन कैसे स्थापित किया जा सकता है। तदनुसार, उन्होंने उस समय के कुछ वरिष्ठ प्रचारकों से विचार-विमर्श किया। अंततः, एक अन्य प्रचारक, शिवराम शंकर आप्टे उर्फ दादासाहेब आप्टे ने 1948 में बहुभाषी राष्ट्रीय समाचार संगठन ‘ (Udaipur Kiran) ’ की स्थापना की। अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव हेमंत धिंग मजूमदार ने कहा कि आज देश में प्रथम श्रेणी के समाचार संगठन का नाम ‘ (Udaipur Kiran) ’ है।

मजूमदार ने आगे कहा कि उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए अपने परिवार का त्याग किया। उन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज को एकजुट करने और आत्मीयता से भरने की इच्छा जागृत करने के लिए अथक, अकल्पनीय कार्य प्रारंभ किया। आप्टे जी ने देश के प्रत्येक व्यक्ति तक संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से संस्कृत विद्वानों से संपर्क किया और उनके साथ लंबी चर्चाएं कीं। उन्होंने संस्कृत विद्वानों से अनुरोध किया कि वे व्याकरण पर अधिक जाेर दिए बिना संस्कृत को आम लोगों की बोलचाल की भाषा बनाने के लिए एक सरल पद्धति विकसित करें। इस प्रकार, 1950 में बाबासाहेब आप्टे ने ‘संस्कृत भाषा शिक्षा’ नामक संस्था को जन्म दिया। इस विद्वान के नेतृत्व में संस्कृत भाषा की एक लोकप्रिय पत्रिका अब राजस्थान से प्रकाशित हो रही है।

हेमंत धिंग मजूमदार ने बाबासाहेब आप्टे के संघ से जुड़ने और उनकी कार्य-पद्धति के बारे में विस्तृत जानकारी दी। हेमंत ने बताया कि उन्होंने पूरे देश में हजारों स्वयंसेवक और कार्यकर्ता तैयार किए हैं। हजारों प्रचारक उभरे हैं। आप्टे जी में अद्भुत आकर्षण शक्ति थी। यदि वे दैनिक शाखा में एक बार किसी स्वयंसेवक के कंधे पर हाथ रख देते, तो वह स्वयंसेवक प्रचारक बन जाता। हेमंत ने कहा कि बाबासाहेब द्वारा तैयार अनेक प्रचारकों के कारण ही संघ आज इस मुकाम पर पहुंचा है।

राष्ट्रीय महासचिव मजूमदार ने कहा कि बाबासाहेब आप्टे ने असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर सहित पूर्वोत्तर राज्यों में कई बार प्रवास किया। उनकी प्रबल इच्छा थी कि अगले जन्म में वे असम में जन्म लें और संघ कार्य में शामिल हों।

उल्लेखनीय है कि, बाबासाहेब आप्टे का जन्म 28 अगस्त, 1903 को महाराष्ट्र के यवतमाल में हुआ था। अपने प्रारंभिक जीवन में उन्होंने कुछ दिनों तक घमन गांव में अध्यापन किया। वे अधिक समय तक अध्यापन नहीं कर सके, राष्ट्रवाद के आकर्षण के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। ब्रिटिश प्रशासन ने उन्हें विभिन्न कारणों से देशद्रोही घोषित कर दिया। उनका पहला अपराध यह था कि उन्होंने छात्रों को राष्ट्रवादी शिक्षा दी, दूसरा अपराध यह था कि उन्होंने लोकमान्य तिलक की जयंती मनाई।

बाद में, सितंबर 1924 में वे नागपुर आ गए और संघ के स्वयंसेवक बन गए। 1927 में उन्हें पहली बार संघ शिक्षावर्ग के बौद्धिक विभाग के प्रमुख का दायित्व सौंपा गया। 1930 के सत्याग्रह आंदोलन के दौरान संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार की अनुपस्थिति में, बाबासाहेब आप्टे ने संघ शाखाओं के सुचारू संचालन का दायित्व संभाला। 1931 में वे संघ के प्रथम प्रचारक के रूप में उभरे।

बाबासाहेब ने 1937 से 1940 तक पूरे भारत का भ्रमण किया। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान, वे अगस्त 1942 में बिहार में रहे। वे 33 छंदों वाले ‘भारत भक्तिस्तोत्र’ की रचना करने वाले सदस्यों में से एक थे। संघ की ‘प्रातःस्मरण’ प्रार्थना में असम के आध्यात्मिक गुरु श्रीमंत शंकरदेव और वीर सेना लचित बरफुकुन का नाम शामिल करने के पीछे आप्टेजी का ही योगदान है। 26 जुलाई, 1972 को महान तपस्वी उमाकांत केशव आप्टे उर्फ बाबासाहेब आप्टे का निधन हो गया।

बाबासाहेब आप्टे की जयंती और समर्पण दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय इतिहास संकलन समिति, असम के पूर्वोत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष डॉ. निरंजन कलिता, असम के राज्य अध्यक्ष डॉ. गजेंद्र अधिकारी, समिति के कामरूप महानगर अध्यक्ष डॉ. अजीत चंद्र डेका और अन्य कई लोग शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन समिति के कामरूप महानगर सचिव मनोज कुमार बर्मन ने किया और डॉ. अजीत चंद्र डेका ने धन्यवाद ज्ञापन किया। —————————–

(Udaipur Kiran) / अरविन्द राय

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