
जोधपुर, 27 जून (Udaipur Kiran) । केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में इस साल खजूर की बम्पर पैदावार हुई है। मानसून से पहले ही खजूर की एडीपी-1 किस्म के फल आने से इनकी तुड़वाई भी आरम्भ हो गई है।
काजरी ने आनन्द कृषि विष्वविद्यालय गुजरात से 2015 में खजूर की एडीपी-1 किस्म के 150 पौधे लाकर संस्थान में शोध आरम्भ की। ये पौधे टीश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए है। विभागाध्यक्ष डा. धीरज सिंह ने बताया कि शोध के परिणाम बहुत ही सफल सकारात्मक एवं उत्साहवर्धक मिले। इसका उत्पादन बढते क्रम में मिल रहा है। इस किस्म के फल का रंग लाल सूर्ख होता है तथा उसमें भरपूर मिठास होती है। खजूर के पौधे से 30 वर्ष तक उपज ली जा सकती है। एक पेड़ पर सात से दस तक गुच्छे लगे है। प्रति पेड़ 60 से 180 किलो की उपज हो रही है।
खजूर में पुष्पण होने पर नर के पौधों से पराग लेकर मादा पौधों के फूलों में हाथों द्वारा परागण क्रिया करना जरूरी है। यह प्रक्रिया हर वर्ष करनी होती है। एक हैक्टर में लगभग 7 नर के पौधें होने चाहिए। शुष्क एवं अर्धशुष्क जलवायु व 7 से 8.5 पीएच वाली मृदा में इसकी खेती की जा सकती है।
खजूर के पांव पानी में और सिर धूम में रहता है यानि पानी के साथ साथ इसको तेज गर्मी भी चाहिए। काजरी के कार्यकारी निदेशक डा. सुमन्त व्यास ने बताया कि शुष्क क्षेत्रों के लिए खजूर की यह किस्म सफल साबित हुई है। खजूर की बागवानी पश्चिमी राजस्थान के लिए उपयुक्त है यहां की जलवायु परिस्थितियां इसकी व्यावसायिक खेती के लिए बहुत उपयुक्त है। काजरी ने पिंड अवस्था को प्राप्त करने के लिए आंशिक सुखाने और पैकिंग के लिए भी तकनीक विकसित की है। एडीपी-1 की किस्म थार में सफल एवं अधिक उपज देने वाली साबित हुई है।
(Udaipur Kiran) / सतीश
