उधमपुर, 11 जुलाई हि.स.। चन्नी-मानसर वाटरशेड परियोजना के तहत नवनिर्मित चेकडैम ने उधमपुर जिले की जल-विहीन चन्नी-मानसर पंचायत के किसानों के लिए राहत और नई उम्मीद जगाई है।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा 4.54 लाख रुपये की अनुमानित लागत से वित्त पोषित इस बांध ने उस गंभीर जल संकट को दूर किया है जिसके कारण कई किसान अपनी खेती छोड़ने को मजबूर हो गए थे। मृदा और जल संरक्षण पर केंद्रित इस परियोजना ने न केवल कृषि गतिविधियों को पुनर्जीवित किया है बल्कि गाँव के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को भी मजबूत किया है।
नाबार्ड के जिला प्रभारी सिद्धार्थ ने कहा कि कुछ दिन पहले हमने स्वयं सहायता समूहों की 30 महिलाओं के लिए मधुमक्खी पालन पर एक प्रशिक्षण आयोजित किया हमने उन्हें समग्र कृषि विकास कार्यक्रम जैसी योजनाओं के तहत ऋण-लिंकिंग में भी मदद की।
हम आदिवासी विकास कार्यक्रम चला रहे हैं। वाटर-शेड कार्यक्रम के तहत भी कई काम किए गए जिसके तहत एक कुआँ और एक चेकडैम का निर्माण किया गया और इनसे चन्नी-मानसर क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को लाभ मिल रहा है। हम प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर योजनाओं के तहत प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। नाबार्ड यहाँ दो तरह से काम करता है स्प्रिंग-शेड, जो पुराने झरनों को पुनर्जीवित करता है और वाटर-शेड, जो जल और मृदा संरक्षण के लिए है हमें राज्य और केंद्र सरकार से पूरा सहयोग मिल रहा है।
चन्नी-मानसर पंचायत के पहाड़ी इलाकों में वर्षों से उचित जल भंडारण सुविधाओं का अभाव था जिससे वर्षा जल बिना उपयोग के ही बह जाता था। परिणामस्वरूप कृषि भूमि का एक बड़ा हिस्सा बंजर हो गया जिससे किसान मौसमी फसलें नहीं उगा पा रहे थे। कई लोगों को खेती छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। हालाँकि नवनिर्मित चेकडैम ने वर्षा जल का प्रभावी ढंग से संचयन करके और फसलों के लिए निरंतर सिंचाई सुनिश्चित करके परिदृश्य बदल दिया है। एक लाभार्थी किसान ने कहा कि यह चेकडैम हमारी अपील पर बनाया गया है इसकी बदौलत हमें अपनी फसलों के लिए पानी मिल रहा है हम इस बाँध के लिए नाबार्ड और वाटरशेड अध्यक्ष का आभार व्यक्त करते हैं यहाँ तक कि घरेलू और जंगली जानवरों को भी इससे पीने का पानी मिलता है।
ग्रामीणों ने वाटरशेड परियोजना के लिए नाबार्ड और भारत सरकार के प्रति अपार आभार व्यक्त किया है जिसने न केवल सूखे जैसी स्थिति को कम किया है बल्कि कृषि उत्पादकता को भी बढ़ाया है। किसान अब कई मौसमी फसलें उगा सकते हैं, जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता
