
–धर्म स्वातंत्र्य कानून-हिन्दू समाज का ही नहीं भारतीयता का रक्षक है: संत समिति
लखनऊ, 09 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । धर्मांतरण भारत की आत्मा पर कुठाराघात है। इतिहास गवाह है जब-जब बलपूर्वक, छल धनबल से धर्मांतरण हुआ है,तब तब समाज में विभाजन और संघर्ष पैदा हुआ है। पीढ़ियों से जो समाज हिंदू धर्म से जुड़ा था, उसे लालच और झूठ के सहारे तोड़ा जा रहा है। यह धार्मिक स्वतंत्रता नहीं, धार्मिक गुलामी का नया रूप है। इस पर रोक लगनी चाहिए। यह बातें अखिल भारतीय संत समिति उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर स्वामी अभयानन्द सरस्वती ने गुरूवार को लखनऊ में कही। वह हलवासिया कोर्ट में आयोजित प्रेसवार्ता को सम्बोधित कर रहे थे।
स्वामी अभयानन्द ने कहा कि मध्यकाल में तलवार के बल पर धर्मांतरण ने भारत की असंख्य परम्पराओं को नष्ट किया है। आज के समय में विदेशी धन, छल, लोभ, प्रलोभन से मिशनरियां हमारे गांव, आदिवासी जंगलों और निर्धन बस्तियां को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा कि धर्म स्वातंत्र्य कानून-हिन्दू समाज का ही नहीं भारतीयता का रक्षक है। भारत में अनेकों विविधताएं हैं। हजारों वर्षों से अलग-अलग पथ परम्पराएं एवं सम्प्रदाय पनपते आ रहे हैं। इसे सुरक्षित रखने और अपनी आस्था एवं पूजा पद्धति के साथ जीवन जीने की स्वतंत्रता का अधिकार है। दुनिया में भारत की प्राचीन सभ्यताएं जीवंत प्रमाण है। लेकिन आज इस स्वतंत्रता पर धर्मांतरण के रूप में बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया है। बलपूर्वक, प्रलोभन और छल से किया गया धर्मांतरण व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है। देश समाज व राष्ट्र की संस्कृति और अस्मिता पर बहुत बड़ा आघात है।
–राज्यों के धर्म स्वातंत्र्य कानून भारत की आत्मा है
अखिल भारतीय संत समिति उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष ने कहा कि भारत के कई राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, गुजरात उड़ीसा और छत्तीसगढ़ ने समय रहते इस षड्यंत्र को रोकने और संस्कृति का संतुलन बनाए रखने के लिए स्वातन्त्र्य अधिनियम बनाए हैं। इन राज्यों में बने कानून का उद्देश्य किसी की आस्था को छीनना नहीं बल्कि बलपूर्वक प्रलोभन से धर्मांतरण को रोकना है। यदि कोई स्वेच्छा एवं स्वविवेक से धर्म परिवर्तन करना चाहता है,तो वह प्रशासन को सूचित करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उस पर कोई प्रलोभन या दबाव तो नहीं डाला गया है।
(Udaipur Kiran) / बृजनंदन
