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स्थानीय बीजों का संरक्षण और आत्मनिर्भरता भविष्य की टिकाऊ खेती की नींव: डॉ अतुल डोगरा

कार्यशाला के दौरान प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए।

मंडी, 24 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से मंडी जिला के सुंदरनगर स्थित राजकीय बहुतकनीकी महाविद्यालय के सभागार में दो दिवसीय मंडल स्तरीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला का आयोजन कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण आत्मा मंडी द्वारा किया गया है। इस कार्यशाला में मंडी, कुल्लू, बिलासपुर और लाहौल-स्पीति जिलों के कुल 405 किसान प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।

कार्यकारी निदेशक राजीव गांधी प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना डॉ अतुल डोगरा ने अपने संबोधन में कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों को सुदृढ़ करना और किसानों को टिकाऊ, लाभकारी तथा पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों की दिशा में प्रेरित करना है।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती केवल उत्पादन की तकनीक नहीं, बल्कि जीवनशैली का विज्ञान है, जो मिट्टी, किसान और उपभोक्ता तीनों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करती है। उन्होंने सीड विलेज बीज ग्राम की अवधारणा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि स्थानीय बीजों का संरक्षण और आत्मनिर्भरता भविष्य की टिकाऊ खेती की नींव है।

पद्मश्री नेक राम शर्मा ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती का सार जल, जंगल, जमीन और देशी गाय की रक्षा में निहित है। उन्होंने कहा कि यही चारों तत्व हिमाचल प्रदेश की समृद्ध और स्थायी कृषि व्यवस्था के मूल आधार हैं। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे प्राकृतिक खेती को केवल उत्पादन की विधि नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवनशैली के रूप में अपनाएं। कार्यशाला के पहले दिन के तकनीकी सत्रों में मनीषा त्रिपाठी ने नेचुरल फार्मिंग सर्टिफिकेशन सिस्टम पर विस्तृत प्रस्तुति दी।

उन्होंने ऑपरेशनल गाइडलाइन एंड वे फारवर्ड विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि यह प्रणाली प्राकृतिक खेती उत्पादों को प्रमाणित करने, पारदर्शिता सुनिश्चित करने और उपभोक्ताओं के विश्वास को सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध होगी। उन्होंने किसानों को प्रमाणन प्रक्रिया, बाज़ार पहचान और राष्ट्रीय स्तर पर पीओएस इंडिया नेचुरल ब्रांडिंग सिस्टम की भूमिका के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इसके अलावा जीवामृत, घनजीवामृत, नीमास्त्र, अग्नास्त्र जैसे जैविक घोलों की तैयारी, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, फसल विविधीकरण और प्राकृतिक उत्पादों के विपणन अवसरों पर विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिए गए। किसानों और विशेषज्ञों के बीच संवादात्मक चर्चाओं ने इस कार्यक्रम को अत्यंत ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक बनाया। कार्यशाला के दूसरे दिन का कार्यक्रम क्षेत्रीय प्रदर्शन, अनुभव-साझा सत्रों और विशेषज्ञ संवाद को समर्पित रहेगा, जिससे प्रतिभागी किसान प्राकृतिक खेती के व्यावहारिक पहलुओं को प्रत्यक्ष रूप से समझ और आत्मसात कर सकेंगे।

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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

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