Bihar

काँग्रेस ने विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग से पूछे सवाल

पटना, 1 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभय दुबे ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि बिहार की अंतिम मतदाता सूची मंगलवार को प्रकाशित हुई, जिसमें कुल 7.42 करोड़ मतदाता दर्ज किए गए हैं। यह संख्या इस वर्ष 24 जून को दर्ज 7.89 करोड़ मतदाताओं की तुलना में लगभग 6 प्रतिशत कम है।

चुनाव आयोग ने राज्य में तीन महीने का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू करने की घोषणा की थी। चुनाव आयोग और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने अंतिम सूची के प्रकाशन में यह नहीं बताया कि मतदाता सूची से कितने विदेशी नागरिकों को हटाया गया। जबकि देश के प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग ने बार-बार घुसपैठियों के लिए सूची के पुनरीक्षण की बात कही।

लेकिन मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन में चुनाव आयोग ने बताया कि नाम काटे जाने के कारण मृत्यु, स्थायी पलायन और डुप्लीकेशन हैं। इससे चुनाव आयोग की उस दलील पर भी सवाल खड़े हो गए हैं, जिसमें उसने इस पुनरीक्षण को नागरिकता सत्यापन अभियान के रूप में भी पेश किया था।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने तर्क दिया था कि वह नागरिकता का सबूत मांगने के अधिकार क्षेत्र में है और मतदाता पर ही इसका भार डालना उचित है। लेकिन अंतिम नतीजों से यह स्पष्ट हुआ कि गैर-नागरिकों या विदेशियों की संख्या शून्य है, जिससे यह सवाल उठता है कि एसआईआर की कसौटी इतनी कठिन क्यों बनाई गई।

इस पुनरीक्षण में 68.6 लाख नाम हटाए गए। इनमें से 65 लाख नाम 1 अगस्त को प्रकाशित प्रारूप सूची में हटाए गए थे और 3.66 लाख नाम दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया के दौरान निकाले गए। इसी दौरान 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए। आयोग ने मतदाता सूची में पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या सार्वजनिक नहीं की। लेकिन इस सूची में प्रतीत होता है कि महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में काफ़ी कम हो गया है।

65 लाख नामों की प्रारूप कटौती में 22 लाख लोगों को मृत चिह्नित किया गया, 36 लाख को स्थायी रूप से पलायन या अनुपस्थित दिखाया गया और 7 लाख अन्यत्र पंजीकृत पाए गए। अंतिम सूची में हटाए गए 3.66 लाख नामों में 2 लाख पलायन के कारण, लगभग 60 हज़ार मृत्यु के कारण और 80 हज़ार डुप्लीकेशन (दो स्थानों पर नाम होने) के कारण हटाए गए। इस प्रकार, विदेशी नागरिक एक भी नहीं है।

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से लेकर मतदाताओं तक यह कहा कि यह प्रक्रिया मतदाता की नागरिकता के प्रमाणीकरण से जुड़ी है। इसलिए 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं को नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया था। जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ था उन्हें अपना जन्म प्रमाण देना था। जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच हुआ था उन्हें अपने साथ एक अभिभावक का भी प्रमाण देना था। और 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को स्वयं और दोनों अभिभावकों का प्रमाण देना था। ये श्रेणियाँ नागरिकता अधिनियम,1955 के अनुसार तय की गई थीं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या सभी बिहारियों की नागरिकता पर सवाल उठाकर चुनाव आयोग और भाजपा-जदयू ने बिहार का अपमान किया?

—————

(Udaipur Kiran) / सुरभित दत्त

Most Popular

To Top