
गुवाहाटी, 13 जुलाई (Udaipur Kiran) । मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि राज्य में लगभग आठ लाख बीघा सरकारी भूमि पर अवैध कब्जाधारियों का नियंत्रण है। बीते चार वर्षों में सरकार ने बड़े स्तर पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाते हुए करीब 1.20 लाख बीघा भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया है और लगभग 25 हजार अतिक्रमणकारियों को बेदखल किया है। मुख्यमंत्री द्वारा दी गई यह जानकारी असम की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति का एक चिंताजनक चित्र प्रस्तुत करती है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार बीते नौ वर्षों से सत्र, वन, सार्वजनिक संस्थान, वेटलैंड, पीजीआर-वीजीआर क्षेत्रों को अतिक्रमण से मुक्त करा रही है। उन्होंने कहा कि श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली बटद्रवा सत्र की 130 बीघा भूमि और इसके आस-पास की 1100 बीघा सरकारी भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराई गई है। वर्तमान में राज्य सरकार बटद्रवा सत्र की 180 बीघा अतिक्रमणमुक्त भूमि पर 186 करोड़ रुपये की लागत से एक अत्याधुनिक सांस्कृतिक परियोजना विकसित कर रही है जिसमें गुरु आसन, संग्रहालय और शंकरदेव की सांस्कृतिक विरासत को समर्पित स्थल बनाए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने गोरुखुटी परियोजना का भी उल्लेख करते हुए कहा कि 2021 में 20 और 23 सितंबर को धौलपुर शिवधाम की 7800 बीघा भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त किया गया था। आज गोरुखुटी बहुउद्देश्यीय कृषि परियोजना के तहत 300 स्थानीय युवक-युवतियों को कृषि सैनिक के रूप में पुनः बसाया गया है और 2024-25 में इस परियोजना ने 4.85 करोड़ रुपये की आय अर्जित की है।
लाउखोवा-बुढ़ाचापोरी वन्यजीव अभयारण्य से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई से जंगली जीवों की वापसी भी देखी गई है। 40 वर्षों के बाद इस क्षेत्र में गैंडा, बाघ, जंगली भैंसा, हाथी और हिरण जैसे जीवों की पुनः उपस्थिति दर्ज हुई है। यह क्षेत्र अब काजीरंगा और अरुणाचल की सीमा पर स्थित अन्य राष्ट्रीय उद्यानों के साथ जैव-प्रवाह गलियारे के रूप में भी कार्य कर रहा है। इसी प्रकार, हाल में धुबड़ी जिले के चापर में करीब चार हजार बीघा भूमि को अतिक्रमणमुक्त किया गया है, जहां अब “असम पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड” द्वारा ताप विद्युत परियोजना स्थापित की जाएगी। इससे 20 हजार प्रत्यक्ष और हजारों परोक्ष रोजगार के अवसर स्थानीय युवाओं को मिलेंगे।
मुख्यमंत्री ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि नदी कटाव प्रभावित और भूमिहीन लोग अपने जिलों के प्रशासन को बिना सूचना दिए ऐसे स्थानों पर बस जाते हैं जहां असमिया हिंदू या मुसलमानों की बहुलता है। उन्होंने इसे मात्र ‘उच्छेद’ का मुद्दा न बताते हुए एक सुनियोजित राजनीतिक षड्यंत्र बताया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह प्रयास असमिया लोगों को राजनीतिक रूप से अल्पसंख्यक बनाने की योजना है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तर लखीमपुर में जब अतिक्रमण हटाया गया तब यह देखा गया कि लोग दक्षिण शालमारा और श्रीभूमि जैसे जिलों से आकर वहां बस गए थे। इसी प्रकार गोलाघाट जिले के सरूपथार क्षेत्र में भी नजदीकी नगांव जिले के धिंग और रुपही क्षेत्र के लोगों के बसने से वहां की जनसांख्यिकी बदल गई है।
मुख्यमंत्री ने इसे “राजनीतिक अतिक्रमण” करार देते हुए स्पष्ट कहा कि ये अवैध कब्जाधारी वास्तव में “राजनीतिक प्रवजनकारी” हैं जो योजनाबद्ध तरीके से असमिया समुदाय को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।
(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश
