
नई दिल्ली, 19 अगस्त (Udaipur Kiran) । केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि वर्ष 1975 से 1977 के दौरान देश में लागू आपातकाल की अवधि में 1.07 करोड़ से अधिक लोगों की नसबंदी की गई, जोकि उस समय तय किए गए कुल लक्ष्य से काफी अधिक थी। यह जानकारी गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दी।
तेलंगाना से सांसद कॉन्डा विश्वेश्वर रेड्डी द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने दो वर्षों 1975-76 और 1976-77 के लिए क्रमश: 24.85 लाख और 42.55 लाख नसबंदी प्रक्रियाओं का लक्ष्य तय किया था। हालांकि 1975-76 में 26,24,755 और 1976-77 में 81,32,209 नसबंदी सर्जरी की गईं। इस प्रकार कुल मिलाकर 1,07,56,964 नसबंदी हुई, जो कि निर्धारित लक्ष्य से लगभग 40 लाख अधिक रही।
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि इन नसबंदी अभियानों को लेकर कई गंभीर शिकायतें भी सामने आईं। शाह आयोग के समक्ष 548 अविवाहित व्यक्तियों की नसबंदी और 1,774 मौतों के मामले, जो नसबंदी से जुड़े हुए थे, दर्ज कराए गए। उल्लेखनीय है कि 28 मई 1977 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. सी. शाह की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया गया था, जिसे आपातकाल के दौरान हुए दुरुपयोगों और परिवार नियोजन कार्यक्रमों में की गई जबरन नसबंदी जैसे मामलों की जांच का दायित्व सौंपा गया था।
शाह आयोग ने 31 अगस्त 1978 को संसद में रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें राज्यवार आंकड़ों के साथ-साथ जबरन कराई गई नसबंदियों, मानवीय अधिकारों के उल्लंघन और प्रशासनिक दमन के मामलों का उल्लेख किया गया।
आयोग के राज्यवार आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में सबसे अधिक 14.44 लाख, पश्चिम बंगाल में 10.86 लाख, उत्तर प्रदेश में 9.65 लाख, मध्यप्रदेश में 11.13 लाख, तमिलनाडु में 8.40 लाख, और आंध्र प्रदेश में 9.06 लाख नसबंदी की गई। कई राज्यों में यह आंकड़े निर्धारित लक्ष्यों से कई गुना अधिक पाए गए।
उदाहरणस्वरूप, हरियाणा में वर्ष 1976-77 के लिए निर्धारित लक्ष्य था 52,000 था जबकि 2,22,000 से अधिक नसबंदी की गई। इसी प्रकार असम, बिहार, राजस्थान, और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी लक्ष्य की तुलना में कहीं अधिक सर्जरी की गई।
तेलंगाना के सांसद कॉन्डा विश्वेश्वर रेड्डी ने पूछा था कि क्या सरकार के पास जबरन और स्वैच्छिक नसबंदी से संबंधित अलग-अलग आंकड़े हैं और क्या इस विषय पर कोई जांच या मुआवजा व्यवस्था बनाई गई थी।
उत्तर में, मंत्री ने स्पष्ट किया कि शाह आयोग को इस विषय पर विस्तृत शिकायतें प्राप्त हुई थीं, परंतु सरकारी अभिलेखों में जबरन और स्वैच्छिक नसबंदी के बीच स्पष्ट भेद का उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि आयोग ने मानवीय अधिकारों के उल्लंघन की गहन जांच की थी।
—————
(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार
