
–जीएसटी एक्ट की धारा 74 के तहत कार्रवाई अनुचित
प्रयागराज, 18 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जीएसटी के एक मामले में टिप्पणी की कि केंद्र सरकार व्यापार करने में सुगमता के लिए जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) लाई है, लेकिन राजस्व अधिकारी इसके मूल उद्देश्य के ही विपरीत काम करने पर तुले हैं।
सेफकॉन लाइफ साइंस की टैक्स याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने कहा कि जब किसी करदाता द्वारा माल की वास्तविक आवाजाही साबित हो जाती है और संबंधित प्राधिकरण द्वारा इसका खंडन नहीं किया जाता है तो जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 74 के तहत कार्यवाही अनुचित है।
इस प्रावधान के तहत कार्यवाही तब शुरू की जा सकती है, जब किसी करदाता ने कर का भुगतान नहीं किया है या कम भुगतान किया है या गलत तरीके से वापसी ली है या धोखाधड़ी, जानबूझकर गलतबयानी या तथ्यों को छिपाकर इनपुट-टैक्स क्रेडिट का गलत लाभ उठाया है या उपयोग किया है।
कोर्ट ने कहा कि जब सरकार को यह पता चला कि अधिनियम की धारा 74 की आड़ में विभिन्न डीलरों को परेशान किया जा रहा है तो उसने 13 दिसम्बर 2023 को एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें विशेष रूप से कहा गया था कि अधिनियम की धारा 74 के तहत कार्यवाही तभी शुरू की जा सकती है जब कर के भुगतान से बचने के लिए कोई धोखाधड़ी, जानबूझकर गलतबयानी या तथ्यों को छिपाया गया हो, अन्यथा नहीं।
सुनवाई के दौरान याची की ओर से कहा गया कि यूनिमैक्स फार्मा केम पुराना तालुका भिवंडी ठाणे के साथ कुछ लेनदेन किया गया, जिसके लिए चालान (इनवॉइस), ई-वे बिल और परिवहन बिल बनाए गए थे। सभी लेनदेन बैंकिंग चैनलों के माध्यम से हुए थे और दूसरी कंपनी द्वारा लेनदेन की घोषणा करते हुए टैक्स रिटर्न दाखिल किया गया था।
इसके बाद भी याची को जीएसटी अधिनियम की धारा 74 के तहत इनपुट-टैक्स क्रेडिट का गलत लाभ उठाने के लिए नोटिस इस आधार पर जारी किया गया कि दूसरी फर्म का पंजीकरण रद्द कर दिया गया था। याची ने विस्तृत जवाब दाखिल किया लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था।
याची की अपील भी खारिज कर दी गई। याची की ओर से कहा गया कि सप्लायर के जीएसटीआर 3 बी में यह दर्शाया गया है कि उसने याची के साथ हुए लेनदेन पर कर जमा किया था। दलील दी गई कि लेनदेन का समर्थन करने वाली सभी सामग्री संबंधित अधिकारियों के साथ कोर्ट में भी पेश की गई थी।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने टिप्पणी की कि सभी दस्तावेज अधिकारियों के सामने पेश किए गए और सभी तर्कों को अधिकारियों ने नोट किया, लेकिन आदेश करते समय उन्हें कोई महत्व नहीं दिया गया।
सप्लायर और याची के जीएसटीआर 3 बी को लेनदेन दिखाते हुए रिकॉर्ड में लाया गया और विभाग ने इन्हें नकारा नहीं। याची और सप्लायर के बीच लेनदेन में कोई अनियमितता नहीं पाई गई जो प्राधिकरण के पास उपलब्ध सामग्री में दर्ज हो। प्राधिकरण द्वारा भरोसा की गई सामग्री याची को प्रदान की जानी चाहिए थी।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
