Uttar Pradesh

यूपी के किसानाें काे मेंथा की जगह मक्के की खेती भा रही

मक्का की फसल

लखनऊ,17 जून (Udaipur Kiran) । अनाजों की रानी कही जाने वाली मक्के की खेती उत्तर प्रदेश की किसानों को भाने लगी है। बाराबंकी के कुछ किसानों को तो इसकी खेती इतनी पसंद आई कि वह मेंथा की जगह अपेक्षाकृत कम पानी में होने वाली मक्के की खेती करने लगे। वहां इसके रकबे में लगातार विस्तार हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि विपणन वर्ष 2024-2025 के लिए योगी सरकार ने प्रति कुंतल मक्के की एमएसपी 2225 रुपये घोषित की है। 15 जून से इसकी खरीद भी शुरू हो चुकी है। यह खरीद 31 जुलाई तक जारी रहेगी।

मक्का प्रोटीन से भी भरपूर

बहुउपयोगी होने के साथ मक्के में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन भी होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा धान, गेहूं ही नहीं रागी, बाजरा, कोदो एवं सावा से भी अधिक होती है। इसके अलावा इसमें खनिज लवण और फाइबर भी भरपूर मात्रा में होती है। कैलेशियम और आयरन भी थोड़ी मात्रा में मिलता है। इसीलिए यह इंसानों के अलावा चारे के रूप में पशुओं और कुक्कुट आहार के लिए भी उपयुक्त है।

बाराबंकी में मेंथा की जगह क्यों मक्के की खेती कर रहे किसान

प्रदेश की राजधानी से सटे इस जिले के किसान खासे प्रगतिशील हैं। रामशरण वर्मा जैसे किसान तो पूरे देश के लिए नजीर हैं। इसके लिए इनको 2019 में पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है। बाराबंकी की पहचान मेंथा की खेती के लिए रही है। पर हाल के कुछ वर्षों के दौरान जायद के सीजन में यहां के कुछ क्षेत्रों के किसान अपेक्षाकृत कम पानी में होने वाले मक्के की खेती करने लगे हैं।

उल्लेखनीय है कि बीते तीन वर्षों से मसौली, रामनगर, फतेहपुर और निंदूरा ब्लॉक में किसानों को मक्का की खेती के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें बीज भी उपलब्ध करवाए गए। पहले जायद में खेत खाली रहते थे या मेंथा की खेती होती थी। अब मक्के की खेती हो रही है। उपज अच्छी हो रही है और बहुउपयोगी होने के कारण बाजार में दाम (प्रति कुंतल 2500 रुपये) भी अच्छे मिल जा रहे हैं। यही वजह है कि किसानों में पिछले कुछ वर्षों से मक्के की खेती का क्रेज बढ़ा है।

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) प्रभारी डॉ. एसके तोमर के अनुसार खरीफ के फसल की बोआई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मई के दूसरे या तीसरे हफ्ते में भी इसकी बोआई की जा सकती है। इससे मानसून आने तक पौधे ऊपर आ जाएंगे और भारी बारिश से होने वाली क्षति नहीं होगी। प्रति एकड़ करीब 8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। अच्छी उपज के लिए बोआई लाइन में करें। लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें। उपलब्ध हो ती बेड प्लांटर का प्रयोग करें।—————

(Udaipur Kiran) / बृजनंदन

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