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पूर्व मालिक के बिजली बकाया के लिए खरीददार जिम्मेदार

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–हाईकोर्ट ने कहा, सरफेसी एक्ट 2002 में नीलामी से संपत्ति खरीदने वाले को नए बिजली कनेक्शन से पहले पूर्व मालिक के बिजली बकाया का भुगतान करना होगा

प्रयागराज, 18 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि सरफेसी एक्ट 2002 के तहत नीलामी के माध्यम से सम्पत्ति खरीदने वाले को नया बिजली कनेक्शन दिए जाने से पहले पूर्व मालिक के बकाया बिजली मूल्य का भुगतान करना होगा। कोर्ट ने बिजली आपूर्ति कम्पनी के इस तर्क को बरकरार रखा कि बकाया राशि का भुगतान न किए जाने का शुल्क सम्पत्ति पर ही लागू होता है।

यह आदेश न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा एवं न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार याची अमीर अहमद ने सरफेसी एक्ट 2002 के तहत बैंक के अधिकृत अधिकारी से नीलामी में सम्पत्ति खरीदी। खरीदी गई सम्पत्ति के लिए नया बिजली कनेक्शन देने से इनकार किए जाने पर यह याचिका की गई। कहा गया कि याची के पास विक्रय प्रमाणपत्र था, जिसमें यह था कि सम्पत्ति उन्हें सभी भारों से मुक्त बेची गई थी। याची ने बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन किया तो आपूर्ति कम्पनी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि संपत्ति पर बिजली मूल्य की रकम बकाया है।

याची की ओर से तर्क दिया गया कि याची ने बैंक के अधिकृत अधिकारी से सम्पत्ति प्राप्त की, जिन्होंने बिजली की कोई खपत नहीं की थी इसलिए कोई बकाया नहीं मांगा जा सकता। तर्क दिया गया कि संपत्ति स्पष्ट रूप से सभी ज्ञात भारों से मुक्त बेची गई थी और केसी निनान बनाम केरल राज्य विद्युत बोर्ड में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय याची के मामले पर लागू नहीं होता।

बिजली आपूर्ति कम्पनी के अधिवक्ता ने यूपीपीसीएल अधिनियम 1988 के खंड 4.3(एफ)(1) व (8) और विद्युत आपूर्ति संहिता 2005 के प्रावधान का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि विक्रेता और क्रेता, दोनों का यह कर्तव्य होगा कि बिक्री की तिथि तक बकाया विद्युत देय राशि का पता लगाएं और इसके अतिरिक्त, विक्रेता और क्रेता दोनों या तो/या संयुक्त रूप से और पृथक रूप से बकाया विद्युत देय राशि का भुगतान करने/ अदेयता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी होंगे। संहिता में यह भी प्रावधान है कि नए कनेक्शन के लिए आवेदन पर लाइसेंसधारी द्वारा केवल बकाया राशि चुकाने के बाद ही कार्रवाई की जाएगी।

विपक्षी अधिवक्ता ने के सी निनान मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय विशेष रूप से अनुच्छेद 117 का भी हवाला दिया, जिसमें पुष्टि की गई है कि विद्युत कंपनियां किसी संपत्ति पर शुल्क लगाकर बाद में हस्तांतरित व्यक्ति से बकाया राशि वसूल सकती है। क्योंकि यह सार्वजनिक हित की रक्षा और उपयोगिताओं की वित्तीय स्थिति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

कोर्ट ने कहा कि याची एक ऐसे उधारकर्ता से सुरक्षित सम्पत्ति का नीलामी क्रेता था, जिसने ऋण नहीं चुकाया था। बिक्री जैसी है, जहां है के आधार पर की गई थी, जिससे याची पर खरीददार सावधान रहें की शर्त लागू हो गई। कोर्ट ने कहा कि बैंक की नीलामी में ऐसी संपत्ति के लिए बोली लगाने वाले याची को कानून के अनुसार संपत्ति से जुड़े अवैतनिक बिजली शुल्क के संबंध में पूछताछ करनी चाहिए थी। साथ ही याची उत्तर प्रदेश विद्युत आपूर्ति संहिता 2005 की धारा 4.3 के प्रावधानों का पालन करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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