Uttar Pradesh

बुंदेली आत्मा और पर्यटन दिवस से विकास की नई राह

बुंदेली आत्मा और पर्यटन दिवस से विकास की नई राह

हमीरपुर, 26 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । 27 सितंबर 2025 को जब पूरी दुनिया विश्व पर्यटन दिवस मना रही होगी, तब पर्यटन के सतत विकास और समुदाय आधारित आजीविका पर चर्चा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक होगी। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश का जिला हमीरपुर ,पर्यटन को एक भीड़-भाड़ वाले गंतव्य की जगह ग्रामीण-प्रथम और जन-केंद्रित अनुभव के रूप में पुनः परिभाषित करने का अवसर पा सकता है।

यमुना और बेतवा नदियों के बीच बसा यह छोटा-सा जिला अपने नदी किनारे के वनक्षेत्रों, प्राचीन मंदिरों और ग्रामीण जीवन की झलकियों के लिए जाना जाता है। विरासत मंदिरों, प्रकृति पथों और स्थानीय तीर्थ मार्गों के जरिये यह क्षेत्र धीरे-धीरे पर्यटन मानचित्र पर अपनी जगह बना रहा है। यमुना पाथवे और महाभारत कालीन मंदिरों जैसे स्थलों का उल्लेख जिला और राज्य पर्यटन पृष्ठों पर है, जिन्हें वास्तविक ग्रामीण अनुभवों से जोड़कर लंबी अवधि के प्रवास के लिए आधार बनाया जा सकता है।

क्यों खास है हमीरपुर?आज के समय में पर्यटकों की रुचि असामान्य, अनुभव-आधारित यात्राओं में बढ़ रही है। वे भीड़ से दूर होमस्टे, कृषि पथ और सांस्कृतिक डूबान चाहते हैं। हमीरपुर की भौगोलिक सघनता इसके लिए उपयुक्त है, क्योंकि छोटे-छोटे सर्किट स्थानीय पंचायतों, होटल संचालकों, शिल्पकारों और कलाकारों के बीच बेहतर सहयोग को संभव बनाते हैं। महेश्वरी माता, चौरादेवी, गौरा देवी, मरही माता, भुवनेश्वरी माता और शेर माता मंदिरों के दर्शन, सामुदायिक हस्तशिल्प पथ और यमुना पाथवे पर सूर्याेदय भ्रमण मिलकर ग्रामीण अनुभवों की एक मजबूत रूपरेखा तैयार करते हैं।

बुंदेली पहचान को केंद्र में रखकर तैयार किए गए पर्यटन पैकेज इस जिले की यूएसपी बन सकते हैं। बुंदेलखंड की जीवंत संस्कृतिकृराइ नृत्य, रसिया गीत, लोककथाएँ और ग्राम्य उत्सवकृको गाँवों में रात्रिकालीन प्रस्तुतियों, कार्यशालाओं और मौसमी आयोजनों के माध्यम से प्रदर्शित किया जा सकता है। हमीरपुर महोत्सव और तीज महोत्सव जैसे क्षेत्रीय आयोजन पहले से ही इस सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और पुनर्जीवित करने की दिशा में संस्थागत सहयोग प्रदान करते हैं।

भोजन पर्यटकों को जोड़ने का सबसे आसान माध्यम है। मोटे अनाज, दालों, मौसमी सब्जियों और पारंपरिक मिठाइयों पर आधारित बुंदेली व्यंजन होमस्टे मेन्यू और पाक कला कार्यशालाओं को विशेष बना सकते हैं। गाँव की रसोईयाँ ऐसे सूक्ष्म अनुभव केंद्र बन सकती हैं जहाँ पर्यटक स्थानीय व्यंजन पकाना, खाना और उनकी परंपरा का आनंद लेना सीखें।

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(Udaipur Kiran) / पंकज मिश्रा

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