
गयाजी, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । बिहार के गयाजी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को पूर्व मध्य रेल की नई बुद्ध सर्किट फास्ट मेमो ट्रेन (03626) को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस ट्रेन का परिचालन वैशाली से कोडरमा के बीच होगा और यह हाजीपुर, सोनपुर, पटना, राजेंद्र नगर, पाटलिपुत्र, फतुहा, बख्तियारपुर, बिहार शरीफ, नालंदा, राजगीर, इमलैया, गया, गुरपा और कोडरमा कुल 14 प्रमुख स्टेशनों पर रुकेगी। यह ट्रेन धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को सीधे जोड़ेगी और इससे विदेशी पर्यटकों और बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।
दुनिया के 20 से अधिक देशों में बौद्ध आबादी बड़ी संख्या में है। थाईलैंड, कंबोडिया, म्यांमार, श्रीलंका, लाओस, भूटान और मंगोलिया जैसे देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक है। जापान, चीन, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों में भी करोड़ों की संख्या में बौद्ध रहते हैं। इन देशों से हर साल हजारों की संख्या में तीर्थयात्री और पर्यटक बिहार आते हैं। नई ट्रेन शुरू होने से नालंदा, राजगीर और गया जैसे स्थलों तक विदेशी पर्यटकों की आसान पहुंच संभव होगी। इससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था और स्थानीय स्तर पर रोजगार भी बढ़ेगा।
बौद्ध धर्म के इन ऐतिहासिक स्थलों से विदेशी आगंतुकों का जुड़ाव बिहार को सांस्कृतिक और बौद्धिक दृष्टि से भी नई पहचान देगा। नालंदा प्राचीन काल में एशिया का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र रहा है, जहां हजारों भिक्षु और विद्वान अध्ययन करते थे। राजगीर और वैशाली जैसे स्थल बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन धर्म के भी केंद्र रहे हैं। गया का महाबोधि मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है और यहीं भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इन सभी स्थलों तक रेलवे संपर्क मजबूत होने से बिहार का अंतरराष्ट्रीय महत्व और बढ़ेगा।
चुनावी दृष्टि से भी इस ट्रेन की अहमियत मानी जा रही है। बिहार में चुनावी माहौल के बीच बुद्ध सर्किट ट्रेन की शुरुआत को सरकार एक बड़े कदम के रूप में पेश कर रही है। यह ट्रेन बौद्ध धर्मावलंबियों और विदेशी पर्यटकों को जोड़ने के साथ-साथ स्थानीय जनता को सुविधा उपलब्ध कराने का काम करेगी। धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को जोड़ने वाले इस फैसले का सीधा असर बिहार की राजनीति और समाज पर पड़ सकता है।
वैशाली, नालंदा, राजगीर और गया जैसे स्थल बौद्ध धर्म की धरोहर हैं। वैशाली वह जगह है जहां बुद्ध के महापरिनिर्वाण के सौ वर्ष बाद दूसरी बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था। यहां अशोक स्तंभ और बुद्ध के पवित्र अवशेष भी मौजूद हैं। नालंदा प्राचीन विश्वविद्यालय और बौद्धिक विरासत के लिए प्रसिद्ध रहा है। राजगीर में बुद्ध और महावीर दोनों ने उपदेश दिए थे और यहां विश्व शांति स्तूप, सप्तपर्णी गुफा और वेणुवन जैसे स्थल आज भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। गया धार्मिक दृष्टि से बौद्ध और हिंदू दोनों समुदायों के लिए पवित्र है।
पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं के बढ़ने से होटल व्यवसाय, हस्तशिल्प, गाइडिंग सेवाएं और स्थानीय बाजारों में रौनक बढ़ेगी। विदेशी पर्यटकों की आमद से यहां की सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों को मजबूती मिलेगी। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
स्थानीय यात्रियों के लिहाज से भी यह ट्रेन सुविधाजनक होगी। इस रूट पर पहले से चल रही पैसेंजर और बस सेवाएं पर्याप्त नहीं थीं। अब हाजीपुर, पटना, फतुहा, बिहार शरीफ और गया जैसे स्टेशनों को सीधे जोड़ने से छात्रों, कामकाजी लोगों और व्यापारियों को सुविधा होगी। पटना और आसपास के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले छात्रों का सफर आसान होगा। कामकाजी लोग सुबह-शाम घर से आ-जा सकेंगे और व्यापारी गया और कोडरमा तक अपने कारोबार को बढ़ा पाएंगे। गया से शुरू हुई बुद्ध सर्किट मेमो ट्रेन धार्मिक पर्यटन, अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव और स्थानीय सुविधा तीनों को जोड़ने का माध्यम बनेगी। इससे बिहार को पर्यटन और बौद्धिक विकास के साथ-साथ रोजगार और सामाजिक सुविधा दोनों का लाभ मिलेगा।
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(Udaipur Kiran) / प्रशांत शेखर
